भूजैवरासायनिक चक्र

  • पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह रैखिक होता है परन्तु पोषकों का प्रवाह चक्रीय होता है।
  • इसका कारण यह है कि ऊर्जा का प्रवाह अधोगामी होता है अर्थात जैसे जैसे ऊर्जा का प्रवाह आगे की तरफ होता है वह या तो उपयोग कर ली जाती है या ऊष्मा के रूप में नष्ट हो जाती है।
  • पोषक तत्वों के चक्रण में जीवों के मृत अवशेष अपघटकों के द्वारा वापस मिट्टी में चले जाते हैं तथा पुनः अवशोषित कर लिए जाते हैं
  • अर्थात हरे पादपों की जड़ें मिट्टी के पोषक तत्वों को अवशोषित करके शाकाहारी जन्तुओं और तत्पश्चात मांसाहारी जन्तुओं में स्थानांतरित कर देती हैं।
  • पोषक तत्व जीवों के मृत अवशेषों में बन्द हो जाते हैं और अपघटकों के द्वारा पुनः मिट्टी में विमोचित हो जाते हैं।
  • पोषक तत्वों का यह पुन:चक्रण भूजैवरासायनिक या पोषक चक्र कहलाता है।
  • पादप और जीवों की विभिन्न जैव प्रक्रियाओं के लिए लगभग 40 तत्वों की आवश्यकता होती है।
  • सम्पूर्ण पृथ्वी या जैव मंडल एक बंद प्रकार का तंत्र है अर्थात पोषक तत्व जैव मंडल में न तो आयतित होते हैं और न ही निर्यात किए जाते हैं।

भूजैवरासायनिक चक्र के दो मुख्य घटक हैं:

  • (1) भण्डार निकाय- वायुमण्डल या चट्टान, जिसमें पोषक तत्वों का विपुल भंडार है।
  • (2) चक्रण निकाय या चक्र के उपखण्ड- ये पौधों और जंतुओं के रूप में कार्बन के अपेक्षाकृत छोटे भंडार हैं।

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