भारतीय चुनाव प्रणाली
- भारतीय गणराज्य में प्रधानमंत्री के पद को सर्वाधिक प्रमुखता दी गई है।
- संसदीय शासन प्रणाली (प्रधानमन्त्री)
- प्रत्यक्ष चुनाव, सीधे लोग सरकार को चुनते हैं
(राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा सदस्यों के चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होते हैं) - हर 5 साल में , चाहे कितनी बार भी
योग्यता
- प्रधानमंत्री को साधारणतया लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखनी चाहिए। यानी भारत का नागरिक हो और कम से कम 25 वर्ष का हो
- यदि कोई व्यक्ति, जो कि लोकसभा का सदस्य नहीं है, प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया जाता है तो उसे 6 माह की अंतर्गत लोकसभा का सदस्य होना पड़ता है। संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन अर्थात लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य अनिवार्य होना चाहिए।
चुनाव
- भारत में लोग लोक सभा सदस्यों के लिए चुनाव करते हैं और जिस भी दल को बहुमत मिलता है उस दल के नेता की अनुच्छेद 75 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री के तौर पर नियुक्ति की जाती है, (नियुक्ति की जाती है, निर्वाचन नहीं, जबकि अमेरिका में निर्वाचन होता है )
- यदि सामान्य चुनाव में कोई भी दल बहुमत नहीं प्राप्त करता, तो राष्ट्रपति लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता को चुनता है या फिर किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त हो। इसके बाद उसे मौका दिया जाता है कि वह एक महीने के अंतर्गत बहुमत प्राप्त करे।
- जब मंत्री परिषद के विरुद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति आने पर राष्ट्रपति लोकसभा में विपक्ष के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है और उन्हें निर्देश देता है कि सरकार के गठन के पश्चात एक मास के अंतर्गत अपना बहुमत सिद्ध करें।
भारत के प्रधानमंत्री की पदावधि
- प्रधानमंत्री अपने पद ग्रहण की तिथि से लोकसभा के अगले चुनाव के बाद मंत्रिमंडल के गठन तथा प्रधानमंत्री पद पर बना रह सकता है, लेकिन इस से पहले वो राष्ट्रपति को इस्तीफा दे कर अपना पद छोड़ सकता है या अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाया भी जा सकता है।
- भारत के प्रधानमंत्री के शक्तियां की बात की जाये तो भारत के प्रधान मंत्री की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से की जा सकती है।- डॉ. बी. आर आंबेडकर
शक्तियां
- अनुच्छेद 75(1) के प्रावधानों के अंतर्गत प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को नियुक्त करने, मंत्रिमंडल से उनके त्याग पत्र को स्वीकार करने, मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने आदि की सिफारिश राष्ट्रपति से करता है।
- प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की अध्यक्षता करता है।
- प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को विभाग भी आवंटित करता है तथा किसी मंत्री को एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर भी करता है।
- सरकार का प्रमुख
- कैबिनेट का नेता
- सेना का वास्तविक मुखिया
- परमाणु शक्ति की कमान
- आर्थिक मामलों का मुखिया
- विदेश नीति के पथ प्रदर्शक
- नीति आयोग का अध्यक्ष
अमेरिकी चुनाव प्रणाली
• अमेरिका में राष्ट्रपति को सर्वाधिक प्रमुखता दी गयी है |
• अध्य्क्षात्मक शासन प्रणाली (राष्ट्रपति)
• अप्रत्यक्ष चुनाव , अमेरिका में लोग सीधे राष्ट्रपति के लिए वोट नहीं देते। इसके बजाय इलेक्टर चुने जाते हैं जो मतदाताओं के लिए कड़ी की तरह काम करते हैं।
• अमेरिका में हर 4 साल में
• सिर्फ 2 बार
योग्यता
• अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति का जन्म अमेरिका में हुआ हो और वह 14 साल से देश में रह रहा हो। उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही राष्ट्रपति को अंग्रेजी भाषा आना भी आवश्यक है।
चुनाव
- राष्ट्रपति का चुनाव 538 इलेक्टर्स करते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत हासिल करना आवश्यक होता है।
- अगर राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के किसी प्रत्याशी को 270 वोट नहीं मिलते, तो प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का चुनाव करती है।
- जिस भी प्रत्याशी की जीत होती है, उसमें उनके द्वारा डाले गए वोट का सीधे-सीधे कोई प्रभाव नहीं होता। पॉपुलर वोट के बजाय हार-जीत इलेक्टोरल कॉलेज पर निर्भर करती है।
- संविधान के अनुसार, वे लोग भी इलेक्टर नहीं बन सकते, जिन्होंने कभी अमेरिका का विरोध किया हो या अमेरिका के दुश्मनों का साथ दिया हो।
- अगर राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के किसी प्रत्याशी को 270 वोट नहीं मिलते, तो प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का चुनाव करती है।
अमेरिका के राष्ट्रपति की पदावधि
- अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना बिलकुल तय होता है। यहां चुनावी साल के नवंबर महीने में पड़ने वाले पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को मतदान होता है। हालांकि यहां 60 दिन पहले वोट डालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस अवधि में अमेरिका से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी ऑनलाइन वोट डाल सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्तियां
- राष्ट्रपति लोगों माफ या नियुक्त कर सकता है लेकिन इसके लिए सीनेट की सहमति जरूरी है। लेकिन सीनेट की मंजूरी के बिना भी राष्ट्रपति अपने मंत्री और दूत नियुक्त कर सकता है।
- संघों के समूह की ताकत : देश के भविष्य के बारे में राष्ट्रपति संसद को जानकारी देता है। वह देश को संबोधित भी करता है। लेकिन राष्ट्रपति अपनी तरफ से कोई विधेयक पेश नहीं कर सकता। भाषण से वह आम जनता का समर्थन हासिल कर सकता है और संसद को कानून बनाने के लिए दबाव बना सकता है।
- राष्ट्रपति किसी भी विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है। यह उसका वीटो अधिकार है। लेकिन संसद भी दो-तिहाई बहुमत के साथ राष्ट्रपति के वीटो को पलट सकती है।
- खास परिस्थितियों में राष्ट्रपति विधेयक को “अपनी पॉकेट” में डाल सकता है। संसद इस वीटो को पलट नहीं सकती। अमेरिका में यह ट्रिक अब तक 1,000 से ज्यादा बार इस्तेमाल की जा चुकी है (भारत में जेबी वीटो – पेप्सू बिल 1956 में डा राजेन्द्र प्रसाद ने तथा भारतीय डाक बिल 1984 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस वीटो का प्रयोग किया था )
- काम के निर्देश : राष्ट्रपति सरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने के निर्देश दे सकता है। इस ताकत को “एक्जीक्यूटिव ऑडर्स” कहा जाता है। यह कानूनी रूप से बाध्य है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राष्ट्रपति निरंकुश हो जाए। अदालत और कॉन्ग्रेस ऐसे आदेश को खिलाफ कानून बना सकती है।
- सीनेट की मंजूरी : अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही किसी भी देश के साथ संधि कर ले, लेकिन उसे कानूनी मंजूरी सीनेट की दो तिहाई सहमति के बाद ही मिलती है। इसे “एक्जीक्यूटिव एग्रीमेंट्स” कहा जाता है।
- सेना की कमान : अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका सेना का कमांडर इन चीफ भी होता है, लेकिन युद्ध का घोषणा संसद ही कर सकती है।
- बेहद कड़ा कंट्रोल : अगर राष्ट्रपति पद का दुरुपयोग करता है या कोई अपराध करता है, तो हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
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