1. पारम्परिक या आम बजट (Aam Budget)

वर्तमान समय के “आम बजट” का प्रारंभिक स्वरूप “पारम्परिक बजट (Traditional Budget) कहलाता है| आम बजट का मुख्य उद्देश्य “विधयिका” और “कार्यपालिका” पर “वित्तीय नियंत्रण” स्थापित करना है| इस बजट में सरकार की आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है| इस बजट में सरकार अगले वित्त वर्ष में किस क्षेत्र में कितना धन खर्च करेगी, उसका उल्लेख करती है|

2. शून्य आधारित बजट (Zero Based Budget)

शून्य आधारित बजट में प्रत्येक कार्य का निर्धारण “शून्य आधार” पर किया जाता है अर्थात पुराने व्यय के आधार पर नए व्यय का निर्धारण नहीं किया जाता है बल्कि प्रत्येक कार्य के लिए नए सिरे से नीति-निर्धारण किया जाता है|

इस बजट को “सूर्य अस्त बजट (sun set budget)” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले प्रत्येक विभाग को शून्य आधारित बजट पेश करना पड़ता है, जिसमें विभाग के प्रत्येक क्रियाकलाप का लेखा-जोखा रहता है|

शून्य आधारित बजट में पिछले वित्त वर्षों में किए गए व्ययों पर विचार नहीं किया जाता है और न ही पिछले वित्त वर्षों के व्यय को आगामी वर्षों के लिए उपयोग किया जाता है| बल्कि इस बजट में इस बात पर जोर दिया जाता है कि व्यय किया जाय या नहीं अर्थात व्यय में वृद्धि या कमी के बजाय व्यय किया जाय या नहीं इस पर विचार किया जाता है|

शून्य आधारित बजट का जन्मदाता “पीटर ए पायर” को माना जाता है, जिन्होंने 1970 में इसका प्रतिपादन किया था| इस प्रणाली का सर्वप्रथम प्रयोग 1973 में अमेरिका के जार्जिया प्रान्त के बजट में तत्कालीन गवर्नर “जिमी कार्टर” द्वारा किया गया था| बाद में 1979 में अमेरिका के राष्ट्रीय बजट में भी इस प्रणाली को अपनाया गया|

भारत में शून्य आधारित बजट की शुरूआत एक प्रमुख शोध संस्थान “वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद्” (Council of Scientific and Industrial Research) द्वारा की गई थी और केन्द्र सरकार ने 1987-88 के बजट में इस प्रणाली को अपनाया था|

3. निष्पादन बजट (Performance Budget)

 किसी कार्य के परिणामों को आधार मानकर बनाये जाने वाले बजट को “निष्पादन बजट (Performance Budget)” कहते हैं| विश्व में सर्वप्रथम “निष्पादन बजट” की शुरूआत संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी|

अमेरिका में 1949 में प्रशासनिक सुधारों के लिए “हूपर आयोग” का गठन किया गया था| इसी आयोग की सिफारिश के आधार पर अमेरिका में “निष्पादन बजट” की शुरूआत हुई थी| “निष्पादन बजट” में सरकार जनता की भलाई के लिए क्या कर रही है? कितना कर रही है? और किस कीमत पर कर रही है?, जैसी सभी बातों को शामिल किया जाता है| भारत में “निष्पादन बजट” को उपलब्धि बजट या कार्यपूर्ति बजट भी कहा जाता है|

4.लैंगिक बजट (Gender Budget)

 किसी बजट में उन तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों पर किया गया खर्च, जिनका संबंध महिला और शिशु कल्याण से होता है, उसका उल्लेख लैंगिक बजट (Gender Budget) माना जाता है| लैंगिक बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के विकास, कल्याण और सशक्तिकरण से संबंधित योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए प्रतिवर्ष एक निर्धारित राशि की व्यवस्था सुनिश्चित करने का प्रावधान करती है|

5.परिणामोन्मुखी बजट (Outcome Budget)

भारत में हर वर्ष बड़ी संख्या में विकास से संबंधित योजनाएं, जैसे- मनरेगा, एनआरएचएम, मध्याहन भोजन योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि शुरू होती हैं| इन योजनाओं में हर वर्ष भारी-भरकम धनराशि खर्च की जाती है| लेकिन, ये योजनाएं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कहां तक सफल रहीं, इसके मूल्यांकन के लिए हमारे देश में कोई खास पैमाना निर्धारित नहीं है| कई बार योजनाओं के लटके रहने से लागत में कई गुना की बढ़ोतरी हो जाती है|

अतः इन कमियों को दूर करने के लिए 2005 में भारत में पहली बार “परिणामोन्मुखी बजट (Outcome Budget)” पेश किया गया था, जिसके अंतर्गत आम बजट में आवंटित धनराशि का विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों ने किस प्रकार उपयोग किया उसका ब्यौरा देना आवश्यक था.

परिणामोन्मुखी बजट (Outcome Budget) सभी मंत्रालयों और विभागों के कार्य प्रदर्शन के लिए एक मापक का कार्य करता है, जिससे सेवा, निर्माण प्रक्रिया, कार्यक्रमों के मूल्यांकन और परिणामों को और अधिक बेहतर बनाने में मदद मिलती है|

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