फेरा और फेमा क्या होता है

सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम(FERA)पारित किया गया, जिसका उद्येश्य था विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना| लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया |

इस कारण दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा प्रस्तावित किया गया था| राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 1999 में फेमा प्रभाव में आ गया|

फेरा क्या है?

फेरा कानून का मुख्य कार्य विदेशी भुगतान पर नियंत्रण लगाना, पूँजी बाजार में काले धन पर नजर रखना, विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात पर नजर रखना और विदेशियों द्वारा अचल संपत्तियों की खरीद को नियंत्रित करना था | इस कानून को भारत में तब लागू किया गया था जब देश का विदेशी पूँजी भंडार बहुत ही ख़राब हालत में था | फेरा का उद्देश्य विदेशी मुद्रा के संरक्षण और अर्थव्यवस्था के विकास में उसका सही उपयोग करना था|

फेमा क्या है?

फेमा का महत्वपूर्ण लक्ष्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन और एकीकरण करना है| इसके अलावा फेमा का लक्ष्य देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देना, विदेशी पूँजी और निवेश को देश में बढ़ावा देना ताकि औद्योगिक विकास और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके | फेमा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को प्रोत्साहित करता है|
फेमा भारत में रहने वाले एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है व मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को दे सकता है|

भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान विदशी मुद्रा बहुत ही सीमित मात्रा में होती थी;इसलिए सरकार देश में विदशी मुद्रा आवागमन पर नजर रखती थी. सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) पारित किया गया, जिसका मुख्य उद्येश्य विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना था. लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया था इस कारण सन 1997-98 के बजट में सरकार ने फेरा-1973 के स्थान पर फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) को लाने का प्रस्ताव रखा था. दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा पास किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद जून 1, 2000 को फेमा प्रभाव में आ गया था.

फेरा और फेमा में क्या अंतर है?

   क्रम संख्या                  फेरा                  फेमा
 1. यह वर्तमान में लागू नही है| यह वर्तमान में लागू है|
 2. इसे संसद ने 1973 में मंजूरी दी थी|इसे संसद ने 1999 में मंजूरी दी थी|
 3. इसमें अपराध को क्रिमिनल अपराध की श्रेणी में रखा जाता था| इसमें अपराध को दीवानी अपराध की श्रेणी में रखा जाता है|
 4. इसे भारत में विदेशी भुगतानों पर  नियंत्रण लगाने और विदेशी मुद्रा का सदुपयोग करने के लिया बनाया गया था| इसका उद्येश्य विदेशी व्यापार और विदेशी भुगतानों को बढ़ावा देना और देश में विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाना|
 5.इसके तहत मुकदमा दर्ज होते ही आरोपी दोषी माना जाता था और उसे ही यह साबित करना होता था कि वह दोषी नही है| इसमें किसी गुनाह के सम्बन्ध में सबूत देने का बोझ आरोपी पर नही बल्कि फेमा लागू करने वाले अधिकारी पर होता है|
 6. इसमें अनुभागों (sections) की संख्या 81 है| इसमें अनुभागों (sections) की संख्या 49  है|
 7. इसके दोषी पाए जाने पर सीधे सजा का प्रावधान था| इसमें दोषी पाए जाने पर सजा तभी होगी जबकि व्यक्ति नोटिस की तिथि से 90 दिन के भीतर निर्धारित अर्थदंड जमा न करे |
 8.इसमें भारत का नागरिक उसी व्यक्ति को माना जाता था जो भारत का नागरिक हो |इसमें भारत का नागरिक उस व्यक्ति को मान लिया जाता है जो 6 महीने से भारत में रह रहा हो|

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