• जिस प्रकार प्रकाश किसी चमकीली सतह से परावर्तित हो जाता है, उसी प्रकार ध्वनि भी पहाडीयों, भवनोंं आदि से टकराकर परावर्तित हो जाती है, किसी पहाडी या घने जंगल में या उंचे स्थान से बोले गये शब्द प्रतिध्वनि या गूंज के रूप में सुनाई देते हैं जब बोले हुए शब्द या ध्वनि किसी दूर की वस्तु से परावर्तित होकर दो या तीन बार सुनाई देती है तो से प्रतिध्वनि कहते हैं।
  • यदि परावर्तक तल का क्षेत्रफल ज्यादा हो और बोले हुए शब्द छोटे और अधिक वृत्ति के होंं तो प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, जिस ध्वनि में अक्षर स्प्ष्ट नहीं होते, जैसे ताली बजानी की आवाज, गोली चलने की आवाज तो ऐसी ध्वनि का प्रभाव कान पर लगभग 1/10 सेकेंड तक रहता है, और यदि परावर्तित ध्वनितरंग कानों तक 1/10 सेकेंड के बाद लौटती है तो प्रतिध्वनि स्प्ष्ट सुनाई देती है। 1/10 सेकेंड में ध्वनि लगभग 34 मीटर की दूरी तय करती है। अत: प्रतिध्वनि सुनने के लिये टकराने वाली वस्तु कम से कम 17 मीटर की दूर पर अवश्य होनी चाहिये।
  • अपवर्त्य ध्वनि – जब दो बडी चट्टानें या दो बडी इमारतें समानान्तर व उचित दूरी पर स्थित होती हैं और उनके बीच में कोई ध्वनि पैदा की जाती है, तो वह ध्वनि क्रमश: दोनों चट्टानों से बार बार परावर्तित होगी इस प्रकार की परावर्तित ध्वनि को अपवर्त्य ध्वनि कहा जाता है, परावर्तकों से बार बार परावर्तन होने से ये सब प्रतिध्वनियां मिलकर गडगडाहट की आवाज पैदा करती हैं, बिजली की गडगडाहट का भी यही कारण है। समुद्र की गहराई ज्ञात करने, राडार और सागर में पंडुब्बी आदि की स्थिति ज्ञात करने के लिये प्रतिध्वनि के सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है

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