बिट्रिश लैंड रैवेन्यू पॉलिसी(British Land Revenue Policy in Hindi)

रैयतवाडी व्यवस्था

  • रैयतवाडी व्यवस्था फ्रांस में प्रचलित व्यवस्था की नकल थी और मलवाडी भारतीय आर्थिक समुदाय की नकल थी और स्थाई बंदोबस इंग्लैड में प्रचलित सामंतवाडी व्यवस्था थी

स्थाई बंदोबस्त

  • ये व्यवस्था भारत की लगभग 19 % भूमि पर लागू की गई थी ये व्यवस्था लार्ड कार्नवलिस द्वारा 1793 ई. में बंगाल, बिहार, उडीसा, बनारस और उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई थी
  • इसके तहत किसानों से भू अधिकार छीनते हुए जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया अब अंग्रेजो के लिए किसान भूमि का मालिक नहीं था उनको जमींदार से मतलब था और जमींदार को जमीन का मालिक मान लिया गया
  • इसके तहत सरकार का कुल हिस्सा 89%और जमींदार का 11% निर्धारित था

महालवाडी व्यवस्था

  • यह व्यवस्था समस्त भारत की कुल 30% भूमि पर लागू की गई थी 1817 से 1818 ई में इस प्रथा का प्रचलन उत्तर पश्चिम प्रांत, मध्य प्रांत और पंजाब में किया
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि कर की ईकाई कृषक का खेत नहीं अपितु ग्राम या महल होती थी
  • इस व्यवस्था के तहत भूराजस्व से सम्बंधित समझौते किसी जमींदार अथ्वा रैयत से ना करके गाँव के सम्पूर्ण पट्टेदारों के साथ किया जाता था इसके तहत भूराजस्व की दर 80% थी

रैयतवाडी व्यवस्था

  • यह व्यवस्था समस्त भूमि के 51% भूमि पर लागू हुई 1820 में टॉमस मुनरो ने यह व्यवस्था लागू की

  • यह व्यवस्था बम्बई, मद्रास प्रिसिडेंटी तथा असम के कुछ भागो में लागू थी इसके तहत कुल आय का 45 से 55% भू राजस्व निर्धारित हुआ
  • इसके अंतर्गत किसान को ही भूमि का स्वामी माना गया और मध्यस्थ (जमींदार) की भूमिका समाप्त कर दी गई
अन्य प्रथाएं 

तीन कठिया पध्दति

  • इस प्रथा के तहत बिहार के चम्पारण में किसानों को अपने अंग्रेजी बागान मालिकों के अनुबंध के आधार पर अपनी कुल भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करनी होती थी

दादनी पध्दति

  • इस प्रथा के अंतर्गत भारतीय व्यापारियों, कारीगरों और शिल्पियों को बिट्रिश व्यापारी को पेशगी के रूप में पैसे दे कर काम करवाते थे