किरचाफ का विकिरण नियम (Kirchhoff’s Radiation Law)
किसी निश्चित ताप पर किसी निश्चित तरंग्दैध्र्य के लिए प्रत्येक वस्तु की उत्सर्जन क्षमता एवं अवशोषण क्षमता का अनुपात एक नियतांक होता है जो कि उस ताप आदर्श कृष्णिका की उत्सर्जन क्षमता के बराबर होता है | यह नियम बताता है कि अच्छे अवशोषक अच्छे उत्सर्जक भी होते हैं |
कौन कौन सी घटनाएँ हैं जो इस नियम पर आधारित हैं
- खाना पकाने वाले बर्तनों की ताली काली तथा खुरदरी रखी जाती है
- रेगिस्तान दिन मे बहुत गरम एवं रात मे बहुत ठंडे हो जाते हैं क्योंकि रेत ऊष्मा का दिन मे अच्छी तरह अवशोषण करके गरम हो जाता है तथा रात मे उशमा का उत्सर्जन करके ठंडा हो जाता है
- गर्मियों मे सफ़ेद एवं जाड़ों मे मे रंगीन कपड़े सुखदायी होते हैं
- बादलों वाली रात स्वच्छ आकाश वाली रात की अपेक्षा गरम होती है क्योंकी बादलों वाली रात मे बादलों के ऊष्मा के बुरे अवशोषक होने के कारण पृथ्वी से उत्सजित ऊष्मा बादलों से परवर्तित होकर वापस आ जाती है
इस नियम को ‘किरचॉफ का संधि नियम’, ‘किरचॉफ का बिन्दु नियम’, ‘किरचॉफ का जंक्सन का नियम’ और किरचॉफ का प्रथम नियम भी कहते हैं।[1]
{\displaystyle \sum _{k=1}^{n}{I}_{k}=0}{\displaystyle \sum _{k=1}^{n}{I}_{k}=0}
n किसी नोड से जुड़ी धारा-शाखाओं की कुल संख्या है।
यह नियम समिश्र धाराओं के लिये भी सत्य है।
{\displaystyle \sum _{k=1}^{n}{\tilde {I}}_{k}=0}{\displaystyle \sum _{k=1}^{n}{\tilde {I}}_{k}=0}
यह नियम आवेश के संरक्षण के नियम पर आधारित है