1857 के विद्रोह के बाद भारत में और भी अनेक विद्रोह हुए जिनमें कुछ नागरिक विद्रोह थे कुछ आदिवासी तथा कुछ कृषक विद्रोह थे
सन्यासी विद्रोह (Sanyasi Vidroh)
- यह 1763 ई. से 1800 ई. तक चला अंग्रेजो के द्वारा बंगाल के आर्थिक शोषण से जमींदार ,शिल्पकार, कृषक सभी नष्ट हो गये थे 1770 में यहाँ भीषण अकाल पडा और तीर्थ स्थानों पर जो आने जाने पर जो प्रतिबंधो से त्रस्त हो कर सन्यासियों ने विद्रोह कर दिया
चुआर विद्रोह(Chuar Vidroh)
- यह 1767 से 1772 तक तथा 1795 से 1816 तक दो कालो में हुआ अकाल और बढे हुए भूमि कर अन्य आर्थिक संकटों के कारण मिदनापुर जिले की एक आदिम जाति थी जो चुआर कहलाती थी उन लोगो ने हथियार उठा लिए
कच्छ का विद्रोह(kacch ka vidroh)
- 1819 में कच्छ के राजा भारमल को अंग्रेजो ने हठा के वहाँ का वास्तविक शासन एक अंग्रेज रेजीडेंट के अधीन प्रतिशासक परिषद को दे दिया इस परिषद द्वारा किये गये परिवर्तनों और अत्याधिक भूमि कर लगाने के कारण लोगों ने विद्रोह कर दिया और यहाँ 1831 में विद्रोह हो गया
बघेरा विद्रोह (Baghera Vidroh)
- यह बडौदा के गायकबाड ने अंग्रेजी सेना की सहायता लेकर लोगों से अधिक कर प्राप्त करने का प्रयास किया तो बघेरा सरदार ने 1818 और 1819 के बीच विद्रोह कर दिया
सूरत का नमक आंदोलन (Surat Aandolan)
- 1844 में सूरत में नमक कर आधा रुपया प्रति मन कर दिया गया 1848में सरकार ने एकमात्र नाप तौल लागू करने का भी निश्च्य किया लोगो ने बढे हुए नमक कर का दृढता पूर्वक बहिष्कार किया और अंत में सरकार को अपना फैसला वापस लेना पडा
रमौसी विद्रोह
- पश्चिमी घाट के निवासी रमौसी जाति के लोगों ने अंग्रेजी शासन पध्दति से अप्रसन्न हो कर 1822,25,26 और 1829में विद्रोह कर दिया और सतारा के आस-पास के क्षेत्र को लूट लिया
कोलाहपुर तथा सामंतवादी विद्रोह
- 1844 ई. में कोलाहपुर राज्य के प्रशासनिक पुर्न:गठन होने के कारण काडकारी सैनिकों की छटनी कर दी गई
- बेगारी का प्रश्न सम्मुख रख काडकारियों ने विद्रोह कर दिया इस प्रकार सामंतबाडियों ने भी मोपला विद्रोह कर दिया
- मोपला विद्रोह ग्रामीणवाद के आतंकवाद के विशिष्ट प्रकार थे जो उन मोपालों के हित में जैनियों की बढी हुई शक्ति को सीमित करने का सबसे प्रभावशाली साधन थे
- 1836 से 1854 के बीच हुए 22 विद्रोहों ने जैनियों की सम्पति पर आक्रमण और उनके मन्दिरों को नष्ट कर दिया यह विद्रोही गरीब किसान व भूमिहीन श्रमिक होते थे
- 1921 में अली मुसालियार के नेतृत्व में पुन: मोपला विद्रोह की चिंगारी उठी इस बार खिलाफत आंदोलनकारी और कास्तकार सम्मिलित रुप से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष करने पर उतारु हो गये
- विद्रोहियों ने कचहरी, थाना, खजाना अन्य सरकारी कार्यालयों विदेशी बगान मालिकों को अपना निशाना बनाया परंतु अंग्रेजी दमन चक्र के कारण 1921 के आते आते विद्रोह पूरी तरह कुचल दिया गया
पागलपंती विद्रोह (Pagalpanthi Vidroh)
- यह 1840 और 1850में हुआ था ये अधार्मिक सम्प्रदाय था जिसे उत्तर बंगाल के कर्मशाह और उसके पुत्र टीपू मे आगे बढाया ये राजनितिक व धार्मिक प्रभावों से प्रभावित थे
फरैजी विद्रोह (Faraiji Vidroh)
- यह 1838से 1857 तक हुआ फरैजी लोग सामाजिक,धार्मिक तथा राजनैतिक परिवर्तनों के प्रतिपादक थे तथा शरीयत उल्ला द्वारा चलाये गये सम्प्रदाय के अनुयायी थे
- शरीयत उल्ला के पुत्र दादू मिया ने बंगाल से अंग्रेजो को निकालने की योजना बनायी ये विद्रोह जमींदारों के अत्याचारों के चलते 1838 से 1857 तक चलता रहा
पाबना विद्रोह
- यह विद्रोह पाबना जिले में 1873-85 ई० में हुआ
- इस विद्रोह को केशव चंद्र राय एवं शंभूनाथ पाल ने नेतृत्व प्रदान किया।
- जमींदारों के विरोध में यूसूफसराय के किसानों ने एक कृषक संघ की स्थापना की तथा आंदोलन छेड़ दिया, जो कि 1876 ई० तक चला।
दक्कन विद्रोह
- यह आंदोलन 1876 ई० में महाराष्ट्र के पूना एवं अहमदनगर जिलों में फैला
- साहूकारों के विरुद्ध आंदोलन की शुरुआत करडाह गाँव (शिखर तालुका) से हुई।
- 1879 ई० में दक्कन कृषक राहत अधिनियम की घोषणा की गई।
किसान आंदोलन
- फरवरी 1918 ई० को गौरी शंकर मिश्र, इंद्र नारायण द्विवेदी तथा मदन मोहन मालवीय के दिशा निर्देशों के तहत उत्तर प्रदेश में एक किसान सभा का गठन हुआ
- उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन को सर्वाधिक मजबूती बाबा रामचंद्र द्वारा 1920 ई० में अवध किसान सभा की स्थापना करके प्रदान की गई।
- ‘अवध किसान सभा’ को जवाहर लाल नेहरू, गौरी शंकर मिश्र एवं केदारनाथ जैसे राष्ट्रवादियों का समर्थन मिला।
- उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच, एवं सीतापुर में लगान वृद्धि के विरोध में किसानों ने एका आंदोलन चलाया जिसमें कुछ जमींदार भी शामिल थे।
कूका आंदोलन
- 1872 ई० में यह आंदोलन पंजाब में कृषि संबंधी समस्याओं के संबंध में अंग्रेजों के खिलाफ हुआ
- इस आंदोलन की शुरूआत भगवत जवाहर मल ने की।
- बाद में इस आंदोलन को जवाहर मल के शिष्य बाबा राम सिंह ने नेतृत्व प्रदान किया।
नील आंदोलन
- यह आंदोलन भारतीय किसानों द्वारा ब्रिटिश नील उत्पादकों के खिलाफ बंगाल में किया गया। 1859 ई० में अपनी आर्थिक मांगों के साथ यह विद्रोह नदिया, पाबना, खुलना, बांका, मालदा एवं दीनाजपुर आदि स्थानों पर फैला
- अप्रैल, 1860 ई० में बारासात उपविभाग, पावना एवं रादिया जिले के समस्त कृषकों ने भारतीय इतिहास की पहली कृषक-हड़ताल कर दी।
- 1860 ई० में ही सरकार ने आंदोलनकारियों के समक्ष झुकते हुए एक नील आयोग (Indigo Commission) की नियुक्ति की।
- नील विद्रोह के विषय में विस्तृत जानकारी दीन बंधु मित्रा की चर्चित पुस्तक नील दर्पण में मिलती है।
- इस आंदोलन का आरंभ दिगंबर एवं विष्णु विश्वास के नेतृत्व में हुआ तथा बाद में हिन्दू पैट्रियॉट के संपादक हरीशचंद्र मुखर्जी का समर्थन इसको मिला।
ताना भगत आंदोलन
- यह आंदोलन 1914ई० में बिहार में जतरा भगत द्वारा किया गया। यह आंदोलन ऊँची लगान दर एवं चौकीदारी कर के विरोध में किया गया।
रंपा विद्रोह
- गोदावरी नदी के उत्तर में स्थित क्षेत्र ‘रंपा’ में 1B40,1845,1858,1861-62,1879 -1916 एवं 1922-31 आदि अवधियों में उल्लेखनीय विद्रोह हुए
- 1886 ई० में इस विद्रोह का नेतृत्व जानी ककारी ने किया।
- 1922-24 ई० में आलूवी सीताराम राजू ने इस विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया।
तेभागा आंदोलन
- भूमि कर की ऊँची दर के खिलाफ 1948 ई० में बंगाल में यह आंदोलन किया गया। कंपा राम सिंह एवं भुवन सिंह ने इसका नेतृत्व किया।
तेलंगाना आंदोलन
- यह आंदोलन आंध्र प्रदेश के किसानों द्वारा साहूकारों, जमींदारों एवं सूदखोरों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ किया गया।
मुंडा विद्रोह
- ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से बिरसा मुंडा ने 1899-1900 ई० में यह विद्रोह दक्षिणी छोटा नागपुर क्षेत्र में किया
- बिरसा मुंडा को उलगुलान की उपाधि मिली।
- 1900 ई० में इस विद्रोह को दबा दिया गया।