- बिहार के हुसेपुर नामक स्थान पर जमींदार फतेह शाही ने भू-राजस्व वसूली के विरोध में 1767-95 ई० की अवधि में विद्रोह किया।
- 1782 ई० में दिर्जिनारायण के नेतृत्व में बंगाल के रंगपुर एवं दीनाजपुर में किसानों ने जमींदारों ‘द्वारा कर की दर बढ़ा दिये जाने के विरोध में आंदोलन किया। दिर्जिनारायण के बाद किसानों का नेतृत्व किन्हा सिंह ने किया।
- 1789 ई० में अकाल प्रभावित बिशनपुर के राजा के नेतृत्व में लगान वढ़ाने के विरोध में किसानों ने विद्रोह कर दिया।
- रामनाथपुरम, तिरुनेलवे तथा डिंडीगल में 1799-1809 ई० के मध्य पल्लयकारों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
- छोटानागपुर के उत्तरी क्षेत्र तथा सिंहभूम एवं पलामू में 1831-32 ई० में जमींदारों एवं ठेकेदारों के खिलाफ नारायण राव के नेतृत्व में कोल विद्रोह (कोल आदिवासियों विद्रोह) हआ।
- कोल विद्रोह का कारण ठेकेदारों एवं जमींदारों द्वारा भूमिकर 35% बढ़ा देना तथा आदिवासियों के 12 गाँव सिखों एवं मुसलमानों को देना था।
- अंग्रेजों की घाट वाली पुलिस व्यवस्था के विरोध में बीरभूम एवं जंगल महाल में 1832 33 ई० में गंगा नारायण के नेतृत्व में भूमिज विद्रोह हुआ।
- 1831 ई० में टीटू मीर (मीर निसार अली) के नेतृत्व में बरासाट (बंगाल) में 1831 ई० में वहाबी विद्रोह हुआ। यह विद्रोह दाढ़ी पर कर लगाये जाने के प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ।
- 1839 ई० में बंगाल के ढाका एवं फरीदपुर जिलों में हाजी शरीयतुल्ला ने फरायजी आंदोलन चलाया।
- यह भूमि-कर शोषित किसानों द्वारा चलाया गया आंदोलन था जिसमें कुछ धार्मिक तत्व भी विद्यमान थे। बाद में इस विद्रोह का नेतृत्व दादू मियाँ ने किया।
- अंग्रेजों की शोषणकारी नीति एवं 1769 ई० में पड़े भीषण अकाल के प्रति उनकी उदासीनता के कारण बिहार एवं बंगाल में सन्यासी विद्रोह हुए
- यह विद्रोह 1763 ई० से ही आरंभ हो गया था, 1769 ई० के अकाल ने इसे गति दी।
- सन्यासी विद्रोह का विवरण बंकिम चंद्र चटर्जी के आनंद मठ में मिलता है।
- सन्यासी विद्रोह का विवरण ए० एन० चंदर की रचना सन्यासी विद्रोह में भी मिलता है।
- 1783 ई० में बंगाल के मिदनापुर जिले में आदिम जाति के चुआर लोगों ने भूमिकर एवं अकाल के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट से त्रस्त होकर चुआर विद्रोह किया।
- 1828 ई० में असम के अहोम अभिजात वर्ग के लोगों ने बर्मा युद्ध के दौरान दिये गये वचन को न निभाने एवं अहोम राज्य को हथियाने के प्रयास के विरोध में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में अहोम विद्रोह हुआ।
- ननक्कलों के राजा तिरुत सिंह ने अंग्रेजों की ब्रह्मपुत्र घाटी तथा सिल्हट को जोड़ने की योजना के विरोध में 1833 ई० में खासी विद्रोह किया, जिसे 1833 ई० में ही दबा दिया गया।
- 1840-50 ई० की अवधि में टीपू गारो ने जमींदारों (अंग्रेज समर्थित) के खिलाफ पागलपंथी विद्रोह किया।
- पागलपंथी एक अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था जिसकी स्थापना करमशाह ने की थी। टीपू गारो उसका पुत्र था।
- भारत के पश्चिमी तट पर स्थित खान देश में भीलों की आदिम जाति ने 1812-19,1825,1831 एवं 1846 ई० में लोकप्रिय भील विद्रोह किया। सेवरम् इस विद्रोह का प्रमुख नेता था।
- भीलों के पड़ोसी कोलों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ 1829-48 ई० की अवधि में कोल विद्रोह किया, जिसे 1848 ई० में दबा दिया गया।
- कच्छ में 1819 ई० एवं 1831 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध राजा भरमल के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
- 1818-19 ई० में ओखा मण्डल के बघेरों ने अंग्रेज समर्थित बड़ौदा के गायकवाड़ द्वारा अधिक कर वसूलने के विरोध में बघेरा विद्रोह किया।
- 1844 ई० में नमक के प्रति मन भाव में 1/2 रुपये की बढ़ोत्तरी के विरोध में सूरत में नमक आंदोलन हुआ।
- पश्चिमी घाट में रहने वाली आदिम रामोसी जाति ने 1822-41ई. के बीच रामोसी विद्रोह किया। सरदार चितर सिंह एवं नरसिंह दत्तात्रेय पेतकर इस विद्रोह के नेता थे। यह विद्रोह अंग्रेजी प्रशासन के खिलाफ था।
- 1844 के पश्चात कोल्हापुर तथा सावंतवाड़ी में छंटनीग्रस्त गडकारी सैनिकों ने बेरोजगारी के कारण गडकारी विद्रोह किया।
- 1794 ई० में कंपनी द्वारा दिये गये अपनी सेना भंग करने के आदेश के विरोध में विजय नगरम् के राजा ने विद्रोह किया।
- 1801 ई० में तमिलनाडु में पालीगारों ने भूमि-कर व्यवस्था के विरोध में प० काट्आवाम्मान के नेतृत्व में पालिगार विद्रोह किया। यह विद्रोह इक्के-दुक्के रूप से 1856 ई० तक चला।
- 1805 ई० में लॉर्ड वेलेस्ली द्वारा ट्रावकोर के राजा पर सहायक संधि लादने के विरोध में रियासत के दीवान वेलूथम्पी ने विद्रोह किया।
- उड़ीसा में 1817-25 ई० की अवधि में पाइक जाति के लोगों ने जगबंधु बख्शी के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध पाइक विद्रोह किया।
- 1776-77 ई० में बंगाल के फकीरों ने मजनू शाह एवं चिराग अली के नेतृत्व में प्रसिद्ध फकीर विद्रोह किया।
आधुनिक काल में हुए विद्रोहों की जानकारी के लिखित स्रोत
- आधुनिक काल में हुए विद्रोहों की जानकारी के लिए ऐतिहासिक ग्रंथों की प्रचुरता है। उनमें कुछ यहाँ दिये गये हैं –
- आनंद मठ – बंकिम चंद्र चटर्जी,
- नील दर्पण – दीनबंधु मित्रा,
- ब्रिटिश भारत का इतिहास – जे० मील,
- द अनाल्स ऑफ रुरल बंगाल – विलियम ‘हंटर,
- दि पोपुलर रिलिजन ऐंड फोक्लोर ऑफ नार्दर्न इंडिया – विलियम क्रुक,
- द लिमिटेड राज; एग्रेरियन रिलेशंस इन कॉलोनियल इंडिया – आनंद ए० यंग,
- सन्यासी विद्रोह – ए०एन० चंदर,
- सियार-उल-मुख्तरैन – गुलाम हुसैन,
- इडिया गजट, 1852 – भारत सरकार,
- कास्ट कनफ्लिक्ट एंड आइडियोलॉजी – आर०ओ० हामोन।