ग्लोबल वार्मिंग के बारे में तो आप सभी ने सुना होगा| ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के नाम पर पृथ्वी को बचाने की बहुत बार अपील भी की जाती है| पर्यावरण पर हुए अध्ययन से हमें पता चलता है कि औद्योगिक क्रांति (Industrial revolaution) के बाद के समय से हमारे जीवाश्म ईंधनों से निकली ग्रीनहाउस गैसों ने पृथ्वी को कितना गर्म किया है और वर्तमान समय में भी यह पृथ्वी को और भी गर्म करती जा रही हैं|

कई तरह के शोध जलवायु परिवर्तन के तरह तरह के प्रभाव का जिक्र कर रहे हैं और इसे रोकने के लिए जो हम लक्ष्य रख रहे हैं वह भी औद्योगिक काल से तुलना वाला ही है|

पिछली एक सदी में पृथ्वी का औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ा है| इस पर विवाद करना मुश्किल है क्योंकि तब तक दुनिया भर में उन्नत तापमापी यंत्र विकसित हो चुके थे| लेकिन इसानों से पहले की क्या स्थिति थी यह बताना थोड़ा मुश्किल है|

क्या तब पृथ्वी गर्म हो रही थी या ठंडी हो रही थी| वैज्ञानिकों के पास छह हजार साल पहले तक सदियों पुराने आंकड़े है  जो लंबे समय के वैश्विक तापमान के बदलावों  की जानकारी दे रही है|

पृथ्वी का तापमान पहले कितना था यह कैसे पता लगा सकते है ?

पिछले कई सदियों तक के तापमान की जानकारी,पेड़ों के छल्लों, अवसादों और कोरल के जरिए हासिल की जा सकती है| इसी तरहके आंकड़े ग्लोशियर के बर्फ में और अवसादों के महीन खोल में भी मिलते हैं| 

इनसे उस दौर के तापमान की जानकारी मिलती जब ये बने थे| जैसे पेड़ों के तनों में बनने वाले छल्ले की मोटाई तापमान के उतार चढ़ाव को दर्ज कर लेती है| यानि ठंडक होने पर छल्ला पतला हो जाता है और ज्यादा तापमान होने पर छल्ला मोटा हो जाता है इसी तरह के कई सुराग मिलते हैं|

इस गुत्थी को सुलझाने के लिए एरिजोना यूनिवर्सिटी की एली ब्रॉडमैन और उनके साथियों ने व्यापक वैश्विक स्तर पर वर्तमान प्रमाणों को जमा किया जिसमें पेड़ों के छल्ले, समुद्री तल के अवासद जैसे पुराने प्राकृतिक और जलवायु प्रतिमानों के नतीजे शामिल थे| उनके आंकलन के नतीजे सुझाते हैं किस तरह से  जलवायु पूर्वानुमान को बेहतर बनाया जा सकता है|

वैज्ञानिक पुरातन समय के तापमान के आंकड़ों का अलग तरह से जुटाते हैं| इसके लिए या तो वे पुरातन अवसादों का अध्ययन करते हैं या फिर जलवायु प्रतिमान के जरिए सिम्यूलेशन का उपयोग करते हैं|

इसके अलावा उन्होंने वनस्पति,समुद्री बर्फ आदि में बदलावों को भी शामिल किया|

जलवायु प्रतिमान की क्या उपयोगिता है?

जलवायु प्रतिमान भी पुरातन पर्यावरण की जानकारी दे सकते हैं| ये पृथ्वी के जलवायु तंत्र का गणितीय प्रस्तुतिकरण होते हैं| इनमें वायुमडंल, जैवमंडल और जलमंडल के बीच के संबंधों को आज की स्थितियों की तुलना में पुरातन स्थितियों के अनुसार सिम्यूलेशन में निर्मित किया जाता है और नतीजे निकाले जाते हैं| जलवायु प्रतिमान वर्तमान हालातों के अध्ययन के लिए उपयोग में लाए जाते हैं और इस आधार पर भविष्य और इतिहास के अनुमान लगाए जाते हैं जैसे पुरातन काल के समय की वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा की जानकारी डालने पर उस समय के तापमान का अनुमान लगाया जा सकता है|

शोध में पाया गया है कि आधुनिक ग्लोबल वार्मिंग से पहले के 6 हजार साल तक के समय पर दोनों तरह के प्रमाणों ने अलग अलग जानकारी दी है| प्राकृतिक पुरातन संकेत बताते हैं 6 हजार साल पहले पृथ्वी 0.7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म थी और औद्योगिक काल तक ठंडी होती रही| वहीं जलवायु प्रतिमान  थोड़ी गर्म होती जलवायु के संकेत देती दिख रही है| शोधकर्ताओं का कहना है कि पुरातन कारकों को शामिल करने से जलवायु का पूर्वानुमान लगाना ज्यादा बेहतर होगा|

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