शुष्क-भूमि कृषि (Dryland farming) सिंचाई किये बिना ही कृषि करने की तकनीक है। यह उन क्षेत्रों के लिये उपयोगी है जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। इसके अंतर्गत उपलब्ध सीमित नमी को संचित करके बिना सिंचाई के ही फसलें उगायी जाती हैं। वर्षा की कमी के कारण मिट्टी की नमी को बनाये रखने तथा उसे बढ़ाने का निरन्तर प्रयास किया जाता है। इसके लिए गहरी जुताई की जाती है और वाष्पीकरण को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। इसके अंतर्गत अल्प नमी में तथा कम समय में उत्पन्न होने वाली फसलें उत्पन्न की जाती हैं।

  • ऎसी कृषि ऐसे क्षेत्रो में की जाती है जहाँ वर्षा 75 सेमी से भी कम होती है |
  • हमारे देश में ऐसा 22% भाग है जहां इस प्रकार की कृषि होती है, इसका 60% भाग राजस्थान, 20% भाग गुजरात तथा शेष पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र आन्ध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में की जाती है|
  • शुष्क क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है, जहाँ जनसंख्या का 72% भाग कृषि पर आधारित है| यहाँ के 65% क्षेत्र पर कृषि की जाती है, जबकि 2.9% क्षेत्र स्थायी चरगाहों , 20% क्षेत्र कृषि योग्य बंजर एवं 12% परती भूमि के रूप में पाया जाता है |
  • कम उत्पादकता के कारण इस क्षेत्र में देश के कुल 4% खाद्यान्न उत्पादन होता है, जो मोटे अनाजों के रूप में है|
  • ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, मूंगफली, दालें एवं तिलहन इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं |
  • शुष्क क्षेत्र के समुचित विकास के लिए अनेक कार्यक्रमों की शुरुआत की गयी है जिसके अंतर्गत 4609 सूक्ष्म जलविभाजक क्षेत्रों को विशेष रूप से चुना गया है, जिनका कुल क्षेत्रफल 3545 हेक्टेयर है |
  • इसके अंतर्गत वर्षा जल के वैज्ञानिक प्रबंधन से लेकर भूमि विकास, व्रक्षारोपण, पशुधन विकास आदि कार्यक्रम सम्मिलित है |

कैसे की जाती है शुष्क कृषि


  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय स्थित अखिल भारतीय सूखा खेती अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत ऐसी तकनीक का विकास किया गया है, जिसके अनुसार मिट्टी, जल एवं फसलों का उचित प्रबंधन कर असिंचित अवस्था में भी ऊँची जमीन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

  • मिट्टी एवं नमी संरक्षण खरीफ फसल कटने के बाद नमी संरक्षण के लिए खेत में पुआल या पत्तियाँ बिछा दी जाती है ताकि खेत की नमी नहीं उड़ने पाये। इस तकनीक को मल्चिंग कहते हैं। यह तकनीक बोआई के तुरन्त बाद भी अपना सकते हैं।
  • जल छाजन (वाटर शेड) के अनुसार भूमि का वर्गीकरण किया जाता है। उसके समुचित उपयोग से भूमि एवं जल का प्रबंधन सही ढंग से किया जा सकता है।
  • वर्षा जल को तालाब में या बाँधकर जमा रखा जाता है। इस पानी से खरीफ फसल को सुखाड़ से बचाया जा सकता है और रबी फसलों की बुआई के बाद आंशिक सिंचाई की जा सकती है।
  • खरीफ फसल कटने के तुरन्त बाद रबी फसल लगायी जाती है ताकि मिट्टी में बची नमी से रबी अंकुरण हो सके।
  • फसल प्रबंधन पथरीली जमीन में वन वृक्ष के पौधे, जैसे काला शीसम, बेर, बेल, जामुन, कटहल, शरीफा तथा चारा फसल में जवार या बाजरा लगाया जाता है।
  • कृषि योग्य ऊँची जमीन में धान, मूंगफली, सोयाबीन, गुनदली, मकई, अरहर, उरद, तिल, कुलथी, एवं मड़ुआ खरीफ में लगायी जाती है
    मानसून का प्रवेश होते ही खरीफ फसलों की बोआई शुरु कर दें। साथ ही 90 से 105 दिनों में तैयार होने वाली फसलों को लगाया जाता है ।



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