एनी बेसेन्ट (Annie Besant)
एनी बेसेन्ट(Annie Besant) उन विदेशी भाई–बहिनों में अग्रणी हैं जिन्होंने भारत और भारतवासियों के प्रति स्मरणीय सेवाएं की हैं |
श्रीमती एनी बेसेन्ट का जीवन परिचय | Biography of Annie Besant
- श्रीमती एनी बेसेन्ट का जन्म 1 अक्टूबर, सन् 1847 को लन्दन में हुआ था. उनके माता–पिता मूलतः आयरिश थे. उनका बचपन का नाम (विवाह पूर्व का नाम) एनी वुड था |
- श्रीमती बेसेन्ट का जन्म एक अत्यन्त सम्मानित परिवार में हुआ था |
- उनके परिवार ने लन्दन को एक नगर प्रमुख प्रदान किया था तथा लॉर्ड हैदरले (Lord Haitherlay) के रूप में इंगलैण्ड को एक लॉर्ड चांसलर भी दिया था |
- अपनी उत्कृष्ट पारिवारिक परम्परा के प्रति श्रीमती बीसैण्ट के मन में गर्व था और उसके कारण वह अपने व्यवहार को श्रेष्ठतम बनाने में प्रयत्नशील बनी रहती थीं और उन्होंने इस बात का पूरा प्रयत्न किया कि वह स्वयं अपनी नजरों में न गिरने पाएं.
शिक्षा
- जब बालिका एनी की अवस्था केवल पाँच वर्ष की थी, उनके पिता की मृत्यु हो गई. इस प्रकार उनके लालन-पालन आदि का भार माता श्रीमती वुड पर आ गया.
- फलतः एनी बेसेन्ट का बाल्यकाल अत्यन्त संघर्षपूर्ण रहा. माता एक छात्रावास चलाने लगी थीं और एनी वुड की देखभाल का कार्य प्रसिद्ध उपन्यासकार कैप्टेन मार्यात की बहिन कु. मार्यात (Miss Marryat) द्वारा किया जाने लगा. |
- एनी की अवस्था जब 14 वर्ष की थी, मिस मार्यात उनको जर्मनी ले गईं. वहाँ कुछ माह तक एनी ने जर्मन भाषा का अध्ययन किया. फ्रांसीसी और जर्मन भाषाओं का सम्यक अध्ययन करने के उपरान्त एनी अपनी माता के पास इंगलैण्ड वापस आ गईं और इंगलैण्ड में एनी को संगीत की गहन शिक्षा दी गई.
विवाह
- सन् 1867 में रैवरेंड फ्रैंक बेसेन्ट नाम के पादरी से एनी का विवाह हुआ. उस समय एनी की अवस्था 20 वर्ष की थी.
- एनी के मन में धर्म की सच्ची भावना समाई हुई थी. पादरी के रूप में वह अपने पति में एक आदर्श पुरुष का दर्शन करने की परिकल्पना लिए हुए थीं, परन्तु ऐसा नहीं हो सका. फलतः विवाह के एक वर्ष बाद ही उनके दाम्पत्य जीवन में तनाव उत्पन्न हो गया. ।
- सन् 1869 और सन् 1870 में उनके क्रमशः पुत्र और पुत्री का जन्म हुआ. उनके जीवन में एक नया प्रकाश आ गया. कुछ समय बाद बच्चों की मृत्यु हो गई.
- पति के व्यवहार एवं आचरण तथा स्वयं द्वारा किए गए व्यापक अध्ययन ने श्रीमती बीसेण्ट को नास्तिक बना दिया. दाम्पत्य जीवन के मतभेद बढ़ते गए और सन् 1873 में एनी बीसेंट ने दाम्पत्य जीवन से मुक्ति प्राप्त कर ली.
सार्वजनिक जीवन
- सन् 1873 तक श्रीमती बेसेन्ट अपने जीवन के अगले चरण के लिए तैयारियाँ कर चुकी थीं. वह चार्ल्स बेडले के प्रति आकर्षित हो चुकी थीं तथा मिस्टर स्कॉट के लिए पैम्फलेट आदि लिखकर जीविका कमाने लगी थीं. |
- सन् 1875 में श्रीमती बेसेन्ट ने फ्री थॉट सोसाइटी के लिए व्याख्यान द्वारा प्रचार-कार्य आरम्भ किया. इससे वह जन-सामान्य के सम्पर्क में आईं और उनको अनेक प्रकार के अनुभव हुए |
- सन् 1885 में श्रीमती बेसेन्ट फेबियन सोसायटी की सदस्या बनीं और वह सिडनी वैब, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, ग्राम वालेस आदि के सम्पर्क में आईं फैबियन सोसाइटी की सदस्या के रूप में श्रीमती बेसेन्ट ने अनेक सामाजिक सुधार के कार्यों में सक्रिय योगदान दिया. मैडम ब्लैवेट्स्की द्वारा लिखित Secret Doctrine में प्रकाशित विचारों में श्रीमती बेसेन्ट ने अपना समाधान पाया और मई, 1889 में उन्होंने मैडम ब्लैवेट्स्की द्वारा स्थापित थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्या स्वीकार कर ली.
- वह जीवनपर्यन्त इस संस्था की सेवा करती रहीं. सन् 1906 में वह थियोसोफिकल सोसाइटी की अध्यक्ष बनीं और जीवनपर्यन्त सन् 1933 तक इस पद को गौरवान्वित करती रहीं.
- थियॉसोफिकल सोसाइटी के प्रति उनकी सेवाओं के महत्व को केवल इस कथन के आधार पर समझा जा सकता है कि मैडम ब्लैवैट्स्की ने थियॉसोफी प्रदान की और श्रीमती बेसेन्ट ने थियोसोफिकल सोसाइटी दी.” कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस संस्था की सदस्यता स्वीकार करने का अर्थ था कि वह विकासवादी विचारधारा को स्वीकार करती थीं तथा आस्तिक हो गई थीं. फलतः धार्मिक विचार वाले ईसाई और नास्तिकता के पक्षधर श्रीमती बेसेन्ट के विरोधी बन गए.
भारत आगमन
- 16 नवम्बर, 1893 का वह महत्वपूर्ण दिवस था, जब श्रीमती एनी बेसेन्ट ने कैंडी में व्याख्यान देकर अपनी भारत–यात्रा आरम्भ की.
- तदुपरान्त उन्होंने तूतीकोरन, बंगलौर, बैजवाड़ा, आगरा, लाहौर, बम्बई आदि नगरों में धर्म, दर्शन, आदि विषयों के परिप्रेक्ष्य में थियॉसोफी की विचारधारा का प्रचार–प्रसार कार्य आरम्भ कर दिया.
- सन् 1901 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भेंट श्रीमती बेसेन्ट से हुई. उस समय नेहरू जी की अवस्था केवल 12 वर्ष थी. उस भेंट को नेहरू जी ने अपने जीवन की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना बताया है.
- उन्होंने लिखा है कि उनके व्यक्तित्व, उनकी प्रसिद्धि एवं वक्तृता ने मुझे अभिभूत कर लिया था. मैं श्रीमती बीसैण्ट के पीछे लगा डोलता था. उसके कई वर्षों बाद राजनीति के क्षेत्र में उनसे मेरी भेट हुई और श्रीमती बेसेन्ट के प्रति मेरी निष्ठा अक्षुण्ण बनी रही.
- मैं जीवनभर उनका भारी प्रशंसक रहा.” नेहरू जी ने भारत के प्रति विभिन्न क्षेत्रों में श्रीमती बेसेन्ट द्वारा की गई सेवाओं की प्रशंसा मुक्त कंठ से की है. भारत उनके प्रति ऋणी है–विशेषकर इसलिए कि श्रीमती बेसेन्ट ने अपनी आत्मा को खोजने के लिए भारतवासियों को प्रेरणा प्रदान की. “India especially owes a very deep debt of gratitude for all she did to enable her to find her own soul.”
- डॉ. भगवान दास, प्रो. चक्रवर्ती सदृश संस्कृतज्ञ एवं धुरंधर विद्वान श्रीमती बेसेन्ट के सहयोगी एवं प्रशंसक बने, डॉ. भगवान दास ने लिखा है कि यद्यपि श्रीमती बेसेन्ट का धर्म थियाँसोफी था, तथापि उन्होंने पूरी तरह अपना भारतीयकरण करने का प्रयत्न किया—रहन–सहन, वेष–भूषा, खान–पान प्रत्येक दृष्टि से |
प्रमुख कार्य
- श्रीमती बेसेन्ट ने भारत और भारतवासियों की सेवा अनेक प्रकार से की शिक्षा के क्षेत्र में, धर्म के क्षेत्र में, दर्शन के क्षेत्र में एवं राजनीति के क्षेत्र में, पं. मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी प्रभृति उनके समकालीन राष्ट्रीय नेताओं ने भारत के स्वतंत्रता–संग्राम में उनके योगदान को अंगीकार करते हुए श्रीमती बेसेन्ट को भारत की महान विभूति के रूप में स्मरण किया है.
- सन् 1193 में भारत की भूमि पर पदार्पण करने के पहले ही श्रीमती बेसेन्ट ने सन् 1892 में लिखे एक पत्र में भारत को अपनी मातृ–भूमि कहा था, राजनीति के क्षेत्र में श्रीमती बेसेन्ट ने लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, मालवीय जी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया.
- राजनीति के मानचित्र में भारत को उचित स्थान प्रदान करने के लिए श्रीमती बेसेन्ट ने सन् 1916 में होमरूल लीग की स्थापना की. इसी संदर्भ में जून 1917 में उन्हें जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी, इसी वर्ष वह कांग्रेस अध्यक्ष भी बनीं.
- श्रीमती एनी बेसेन्ट की राजनीतिक दृष्टि बहुत पैनी थी. सन् 1920–21 में महात्मा गांधी द्वारा प्रवर्तित असहयोग आन्दोलन एवं खिलाफत आन्दोलन का उन्होंने विरोध किया और इन दोनों संदर्भ में गांधी जी से मतभेद होने पर श्रीमती बेसेन्ट ने कांग्रेस छोड़ दी.
- आज हम अनुभव करते हैं कि श्रीमती बेसेन्ट की दृष्टि अधिक व्यावहारिक एवं दूरगामी थी. श्रीमती बेसेन्ट ने असहयोग आन्दोलन के संदर्भ में ठीक ही कहा था कि “हम देश को स्वतंत्र तो कर लेंगे, परन्तु उस पर शासन नहीं कर पाएंगे, क्योंकि अनुशासनहीनता की शक्तियाँ हमारे युवावर्ग को पूरी तरह जकड़ लेंगी |
- भारत में व्याप्त अनुशासनहीनता श्रीमती एनी बेसेन्ट की दूरगामी दृष्टि की कहानी डंके की चोट पर कह रही है और मुसलमानों का अलगाववाद सुस्पष्ट है ही, यह भी एक कठोर तथ्य है कि असहयोग आन्दोलन के मध्य कुछ लोगों ने ज्यादतियाँ की थीं और उस संदर्भ में स्वयं गांधी जी ने हिमालयीन ब्लण्डर (हिमालय के समान बड़ी भूल) कहकर अपनी गलती स्वीकार की थी |
- खिलाफत का समर्थन करके गांधी जी मुसलमानों का दिल न जीत सके और उन्होंने राष्ट्रीय शक्तियों को दुर्बल ही बनाया |
- श्रीमती बेसेन्ट ने भारतीय संस्कृति के उद्धार के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि उन्होंने पुराणों का पुनरुद्धार किया.
- स्वामी दयानन्द ने तो कपोल कल्पित बताकर पुराण–साहित्य को अस्वीकार कर ही दिया था, परन्तु श्रीमती बेसेन्ट ने उन्हें प्रतीक शैली पर लिखे गए ज्ञान के अक्षय भण्डार बताया और कहा कि भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं उसके उत्थान के लिए पुराणों के महत्व को स्वीकार करना ही होगा |
- शिक्षा के क्षेत्र में श्रीमती बेसेन्ट ने कई संस्थाओं की स्थापना की तथा पुस्तकें लिखीं, बाल–साहित्य का प्रणयन किया, शिक्षा के वास्तविक रूप को स्पष्ट किया आदि.
- समाज–कल्याण का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिसमें श्रीमती बेसेन्ट ने अपना महत्वपूर्ण योग न दिया हो.
- श्रीमती बेसेन्ट उन इने–गिने व्यक्तियों में थीं जिन्हें महात्मा गांधी की भाँति किसी एक क्षेत्र विशेष की सीमाओं में बाँध कर नहीं रखा जा सकता था.
- उनका भगवद्गीता का अनुवाद ‘थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता’ इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू धर्म एवं दर्शन में उनकी गहरी आस्था थी।
उन्होंने 1898 में वाराणसी में सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की जो बाद में जाकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के नाम से जाना गया | सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए उन्होंने ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ नामक संस्था का संगठन किया। इस संस्था की सदस्यता के लिये आवश्यक था कि उसे नीचे लिखे प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ता था –
- मैं जाति पाँति पर आधारित छुआछूत नहीं करुँगा।
- मैं अपने पुत्रों का विवाह 18 वर्ष से पहले नहीं करुँगा।
- मैं अपनी पुत्रियों का विवाह 16 वर्ष से पहले नहीं करुंगा।
- मैं पत्नी, पुत्रियों और कुटुम्ब की अन्य स्त्रियों को शिक्षा दिलाऊँगा; कन्या शिक्षा का प्रचार करुँगा। स्त्रियों की
- समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करुँगा।
- मैं जन साधारण में शिक्षा का प्रचार करुँगा।
- मैं सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वर्ग पर आधारित भेद-भाव को मिटाने का प्रयास करुँगा।
- मैं सक्रिय रूप से उन सामाजिक बन्धनों का विरोध करुँगा जो विधवा, स्त्री के सामने आते हैं तो पुनर्विवाह करती हैं।
- मैं कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक शिक्षा एवं सामाजिक और राजनीतिक उन्नति के क्षेत्र में एकता लाने का प्रयत्न
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व व निर्देशन में करुंगा।
अन्तिम समय
- विभिन्न शक्तियों एवं परिस्थितियों के फलस्वरूप सन् 1947 में भारत को स्वराज्य की प्राप्ति हुई और वह एक स्वतंत्र देश के रूप में ब्रिटिश राष्ट्रकुल का सदस्य बना.
- भारत की इसी आदर्श स्थिति की प्राप्ति के हेतु श्रीमती बेसेन्ट ने जीवन भर संघर्ष किया और कष्ट एवं अपमान सहन किए. दुर्भाग्य यह रहा कि यह शुभ दिन देखने के लिए वह जीवित नहीं रह सकीं.
- भद्रास में श्रीमती एनी बेसेन्ट के चित्र का अनावरण करते हुए स्वतन्त्र भारत के गवर्नर जनरल श्री सी. राजगोपालाचारी ने दर्द भरी वाणी से ये शब्द कहे थे कि “हमने यदि श्रीमती बेसेन्ट की बात मानी होती, तो भारत आज से 20 वर्ष पूर्व ही स्वतंत्र हो गया होता.
- श्रीमती बेसेन्ट ने सन् 1927 में यह प्रस्ताव किया था कि राष्ट्रकुल के सदस्य के रूप में भारत को आजादी स्वीकार कर लेनी चाहिए. तब न देश का विभाजन होता, न हिन्दू–मुस्लिम दंगे होते और न इतना रक्तपात होता और अंततः भारत राष्ट्रकुल सदस्य तो बना ही.
- सन् 1931 व 1932 में होने वाली गोलमेज कान्फ्रेंसों से उत्पन्न निराशा ने उनके स्वास्थ्य को एकदम झकझोर दिया था और वह 20 सितम्बर, सन् 1933 को परलोकवासिनी हुईं. थियॉसोफिकल सोसाइटी, वाराणसी स्थित उनके निवास–स्थल ‘शांतिकुंज‘ में जाने पर ऐसा आभास होता है कि वह आज भी भारत माता और उसकी सन्तानों की सेवा में संलग्न हैं |
प्रमुख रचनायें –
- डेथ-ऐण्ड आफ्टर (थियोसॉफिकल मैन्युअल III) – 1893
- आत्मकथा – 1893
- इन द आउटर कोर्ट – 1895
- कर्म (थियोसॉफिकल मैन्युअल IV) – 1895
- द सेल्फ ऐण्ड इट्स शीथ्स – 1895
- मैन ऐण्ड हिज बौडीज (थियोसॉफिकल मैन्युअल VII) – 1896
- द पाथ ऑफ डिसाइपिल्शिप – 1896
- द ऐंश्यिएण्ट विज्डम – 1897
- फोर ग्रेट रेलिजन्स – 1897
- एवोल्यूशन ऑफ लाइफ एण्ड फॉर्म -1899
- सम प्रॉब्लम्स ऑफ लाइफ – 1900
- थॉट पावर : इट्स कण्ट्रोल ऐण्ड कल्चर – 1901
- रेलिजस प्रॉब्लम् इन इण्डिया – 1902
- द पेडिग्री ऑफ मैन – 1904
- ए स्टडी इन कौंसेस्नेस – 1904
- ए स्टडी इन कर्मा – 1912
- वेक अप, इण्डिया : ए प्ली फॉर सोशल रिफॉर्म – 1912
- इण्डिया ऐण्ड ए एम्पायर – 1914
- फॉर इण्डियाज अपलिफ्ट – 1914
- द कॉमनवील – 1914 (प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र)
- न्यू इण्डिया – 1914 (दैनिक पत्र)
- हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम – 1914
- इण्डिया : ए नेशन – 1914
- कांग्रेस स्पीचेज – 1917
- द बर्थ ऑफ न्यू इण्डिया – 1917
- लेटर्स टू ए यंग इण्डियन प्रिन्स – 1921
- द फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटक्स – 1922
- ब्रह्म विद्या – 1923
- इण्डियन आर्ट – 1924
- इण्डिया : बौण्ड ऑर फ्री? – 1926
प्रश्न उत्तर
- सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना किसने की थी ? – एनी बेसेन्ट
- 1927 में यह प्रस्ताव किसने दिया था कि राष्ट्रकुल के सदस्य के रूप में भारत को आजादी स्वीकार कर लेनी चाहिए ? – एनी बेसेन्ट
- ‘थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता’ किसकी पुस्तक है ? – एनी बेसेन्ट
- सन् 1916 में होमरूल लीग की स्थापना किसने की ? – एनी बेसेन्ट
- थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने की थी ? – मैडम ब्लैवेट्स्की
- सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए उन्होंने ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ नामक संस्था का गठन किसने किया ? – एनी बेसेन्ट
- पुराणों के पुनरुद्धार का कार्य किस विदेशी के द्वारा किया गया जबकि स्वामी दयानन्द ने पुराण-साहित्य को अस्वीकार कर ही दिया था ? – एनी बेसेन्ट
- पहली महिला का नाम जो 1917 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं ? – एनी बेसेन्ट
- ये शब्द किसके थे ? “हमने यदि श्रीमती बेसेन्ट की बात मानी होती, तो भारत आज से 20 वर्ष पूर्व ही स्वतंत्र हो गया होता” – श्री सी. राजगोपालाचारी