महादेव गोविंद रानाडे

  • महादेव गोविंद रानाडे का जन्म 18 जनवरी, 1842 को महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे निफाड़ में हुआ था।
  • रानाडे एक कट्टर चितपावन ब्राह्मण परिवार से थे।
  • उनका जन्म निम्फड में हुआ था और उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष कोल्हापुर में बिताए, जहाँ उनके पिता एक मंत्री थे।
  • इनकी शिक्षा मुंबई के एल्फिन्स्टोन कॉलेज में चौदह वर्ष की आयु में आरम्भ हुई थी।
  • ये बम्बई विश्वविद्यालय के कला स्नातकोत्तर(1862) एवं विधि स्नातकोत्तर (एल.एल.बी) (1866) में) के पाठ्यक्रमों में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए।
  • इन्हें बम्बई प्रेसीडेंसी मैजिस्ट्रेट, मुंबई स्मॉल कौज़ेज़ कोर्ट के चतुर्थ न्यायाधीश, प्रथम श्रेणी उप-न्यायाधीश, पुणे 1876 में नियुक्त किया गया।
  • सन 1885 से ये उच्च न्यायालय से जुड़े। ये बम्बई वैधानिक परिषद के सदस्य भी थे।
  • 1893 में उन्हें मुंबई उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
  • उनकी प्रथम पत्नी की मृत्यु के बाद, एक बालिका, रामाबाई राणाडे से विवाह किया, जिसे बाद में उन्होंने शिक्षित भी किया।
  • उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने उनके शैक्षिक एवं सामाजिक सुधर कार्यों को चलाया। उनके कोई संतान नहीं थी।
  • न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे एक ब्रिटिश काल के भारतीय न्यायाधीश, लेखक एवं समाज-सुधारक थे।
  • भारत की महान विभूति महादेव गोविन्द रानाडे एक प्रसिद्ध विद्वान, समाज सुधारक, न्यायविद और भारतीय राष्ट्रवादी थे।
  • इनके इन्हीं विशेषताओं के कारण इन्हें ‘महाराष्ट्र का सुकरात’ कहा जाता था।
  • रानाडे को तत्कालीन समाज सुधारक संगठनों जैसे कि प्रार्थना समाज, आर्य समाज और ब्रह्म समाज आदि ने काफी प्रभावित किया।
  • इन्होंने ब्रह्म समाज आन्दोलन की विचारधारा को बंगाल के बाहर प्रसारित करने का काम किया।
  • तात्कालिक सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों का कड़ा विरोध करते हुए इन्होंने समाज सुधार के कामों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
  • महादेव गोविन्द रानाडे ने सामाजिक कुरीतियाँ जैसे बाल विवाह, विधवाओं का मुंडन, शादी-विवाह और समारोहों में जरुरत से ज्यादा खर्च और विदेश यात्रा के लिए जातिगत भेदभाव का पुरजोर विरोध किया।
  • महादेव गोविन्द रानाडे ने विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा पर भी बल दिया।
  • इन्होंने कई सार्वजनिक संगठनों के गठन में अपना योगदान दिया। इनमें अहमदनगर शिक्षा समिति, पूना सार्वजानिक सभा और प्रार्थना समाज जैसे महत्वपूर्ण संगठन शामिल थे।
  • रानाडे ‘दक्कन एजुकेशनल सोसायटी’ के संस्थापकों में से भी एक थे।
  • इन्होंने एंग्लो-मराठी समाचार पत्र ‘इन्दुप्रकाश’ का भी सम्पादन किया। साथ ही, इन्होंने विधवा पुनर्विवाह, मालगुजारी कानून, राजा राममोहन राय की जीवनी, मराठों का उत्कर्ष, धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आदि रचनाएं लिखी।
  • एक सच्चे राष्ट्रवादी के रूप में महादेव गोविंद रानाडे ने ना केवल ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का समर्थन किया, बल्कि 1885 ई. में कांग्रेस के प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग भी लिया।
  • महादेव गोविंद रानाडे स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे।
  • ये अपने जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित पदों आसीन रहे जिनमें बॉम्बे विधान परिषद् का सदस्य, केंद्र सरकार के वित्त समिति के सदस्य और बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे पद शामिल हैं।
  • एक प्रसिद्ध हस्ती होने के साथ-साथ रानाडे का व्यक्तित्व काफी शांत और प्रभावशाली था।
  • ब्रिटेन के साथ समझौता कर वे भारत में सुधार लाना चाहते थे।
  • उनका कहना था कि भारत जैसे देश में राष्ट्र निर्माण के चार अहम स्तंभ होने चाहिए। इसके लिए किसानों और महिलाओं का सशक्तिकरण ज़रूरी है। हरेक को शिक्षा मिलनी चाहिए और समाज सुधार के क्रांतिकारी क़दम उठाए जाने चाहिए।
  • 16 जनवरी, 1901 को इन्होंने इस संसार को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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