पृथ्वीराज चौहान, चौहान राजवंश का प्रसिद्ध राजा थे। वह चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक थे|  सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म साल 1166 में अजमेर के राजा सोमेश्वप चौहान के घर हुआ था।   कर्पूरी देवी पृथ्वीराज चौहान की मां दिल्ली के राजा अनंगपाल द्वितीय की इकलौती बेटी थीं। 

पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे |

विषयविवरण
पूरा नामपृथ्वीराज चौहान
जन्म1166 ईस्वी
मृत्यु1192 ईस्वी
पितासोमेश्वर चौहान
माताकर्पूरदेवी
वंशचौहान वंश
राज्यदिल्ली और अजमेर
प्रमुख युद्धपहला तराइन का युद्ध (1191 ईस्वी), दूसरा तराइन का युद्ध (1192 ईस्वी)
पत्नीसंयोगिता
प्रमुख कार्यउन्होंने अपने राज्य में न्याय, समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। संयोगिता के स्वयंवर में उन्होंने बड़ी वीरता दिखाई।
यादगार बातेंउनकी वीरता, साहस और नेतृत्व की कहानियाँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। पृथ्वीराज रासो, एक हिन्दी एपिक कविता, उनकी जीवनी को चरितार्थ करती है।

पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा

उनका बचपन अजमेर, राजस्थान में बिता। उन्होंने अपनी शिक्षा ब्राह्मणों से प्राप्त की थी और उन्हें धनुर्विद्या में विशेष शिक्षा मिली थी|

बचपन में ही कुशल योद्धा रहे सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध के कई गुण सीख थे। बाल्य काल में ही उनके अंदर योद्धा बनने के सभी गुण आ गए थे। उत्तर भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने अजमेर और दिल्ली पर राज किया। 

पृथ्वीराज चौहान छह भाषाएं जानते थे जिनमें संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा शामिल है। इसके साथ ही उनको मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था।

दिल्ली का सिंहासन

पृथ्वीराज चौहान के दादा अंगम ने पृथ्वीराज चौहान के साहस और बहादुरी की कहानियां सुनी तो इसके बाद उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाने का एलान कर दिया।

पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का नव-निर्माण किया। उससे पहले तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने विशाल रूप देकर पूरा किया। वह उसके नाम पर पिथौरागढ़ कहलाता है, और दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जीर्णावस्था में विद्यमान है।

पृथ्वीराज का राज्याभिषेक

पृथ्वीराज का राज्याभिषेक 1178 ईस्वी में हुआ जब वह केवल 12 साल के थे। उन्होंने अजमेर और दिल्ली के राज्यों का नेतृत्व किया। उनके शासन काल में, उन्होंने अपनी सेना को मजबूत किया और कई युद्धों में विजय प्राप्त की।

अजमेर की महारानी कपुरीदेवी अपने पिता अंगपाल की एक लौती संतान थी. इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी, कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका शासन कौन संभालेगा. उन्होने अपनी पुत्री और दामाद के सामने अपने दोहित्र को अपना उत्तराअधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की और दोनों की सहमति के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. सन 1166 मे महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हे दिल्ली का कार्यभार सौपा गया|

अजमेर की गद्दी

जब मुइज्जुद्दीन मुहम्मद मुल्तान और उच्छ पर अधिकार करने की चेष्टा कर रहा था, एक चौदह साल का लड़का, पृथ्वीराज अजमेर की गद्दी पर बैठा। पृथ्वीराज के बारे में कई कहानियाँ मशहूर हैं।

तराइन का युद्ध

पृथ्वीराज चौहान का सबसे प्रसिद्ध युद्ध तराइन का युद्ध था, जिसमें उन्होंने मुहम्मद गोरी से भिड़ा।तराइन में 1191 में जो युद्ध हुआ उसमें ग़ोरी सेना के पाँव उखड़ गए और स्वयं मुइज्जुद्दीन मुहम्मद की जान एक युवा ख़िलज़ी घुड़सवार ने बचाई। पृथ्वीराज अब भटिंडा की ओर मुड़ा और तेरह महीनों के घेरे के बाद उसे अपने क़ब्ज़े में कर लिया।

तराइन की दूसरी लड़ाई- तराइन की दूसरी लड़ाई को भारतीय इतिहास का एक मोड़ माना जाता है। मुइज्जुद्दीन ने इसके लिए 1,20,000 सैनिकों के साथ मैदान में उतरा जिसमें बड़ी संख्या में बख्तरबंद घुड़सवार और 10,000 धनुर्धारी घुड़सवार शामिल थे।

जैसे ही पृथ्वीराज ने ग़ोरियों के ख़तरे को भाँपा, उसने उत्तर भारत के सभी राजाओं से सहायता का अनुरोध किया। बताया जाता है कि कई राजाओं ने उसकी मदद के लिए अपने सैनिक भेजे, लेकिन कन्नौज का शासक जयचंद्र चुप रहा|

इस युद्ध की पहली बार वह विजयी रहे, लेकिन दूसरी बार 1192 ईस्वी में उन्हें हार माननी पड़ी और उन्हें गोरी के हाथो में कैद कर लिया गया था। कहानियाँ कहती हैं कि बाद में पृथ्वीराज ने अपने शत्रु को मारने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे और उनकी मृत्यु हो गई।

पृथ्वीराज चौहान की विशाल सेना

पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे. कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होने कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए. परंतु अंत मे कुशल घुड़ सवारों की कमी और जयचंद्र की गद्दारी और अन्य राजपूत राजाओ के सहयोग के अभाव मे वे मुहम्मद गौरी से द्वितीय युध्द हार गए|

साम्राज्य विस्तार की नीति

पृथ्वीराज ने अपने समय के विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी को कई बार पराजित किया। युवा पृथ्वीराज ने आरम्भ से ही साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। पहले अपने सगे-सम्बन्धियों के विरोध को समाप्त कर उसने राजस्थान के कई छोटे राज्यों को अपने क़ब्ज़े में कर लिया।

फिर बुंदेलखण्ड पर चढ़ाई की तथा महोबा के निकट एक युद्ध में चदेलों को पराजित किया। इसी युद्ध में प्रसिद्ध भाइयों, आल्हा और ऊदल ने महोबा को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। पृथ्वीराज ने उन्हें पराजित करने के बावजूद उनके राज्य को नहीं हड़पा।

इसके बाद उसने गुजरात पर आक्रमण किया, पर गुजरात के शासक ‘भीम द्वितीय’ ने, जो पहले मुइज्जुद्दीन मुहम्मद को पराजित कर चुका था, पृथ्वीराज को मात दी। इस पराजय से बाध्य होकर पृथ्वीराज को पंजाब तथा गंगा घाटी की ओर मुड़ना पड़ा।

पृथ्वीराज चौहान व संयोगिता

पृथ्वीराज चौहान को कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता पसंद आ गई, राजकुमारी संयोगिता से प्रेम होने पर, बाद वह संयोगिता को स्वयंवर से ही उठा ले गए और गन्धर्व विवाह किया। यही कहानी अपने आप में एक मिसाल बन गई। हालांकि संयोगिता के पिता राजा जयचंद और पृथ्वीराज चौहान की आपस में नहीं बनती थी। शादी के लिए जयचंद राजी नहीं थे। संयोगिता को उठा ले जाने के बाद जयचंद ने पृथ्वीराज से दुश्मनी मान ली।

चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान

चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों बचपन के मित्र थे और बाद में आगे चलकर चन्द्रवरदाई एक कवि और लेखक बने जिन्होंने हिंदी /अपभ्रंश में एक महाकाव्य पृथ्वीराज रासो लिखा।


एक विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी ने बार बार युद्ध करके पृथ्वीराज चौहान को हराना चाहा पर ऐसा ना हो पाया। पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में परास्त किया और दरियादिली दिखाते हुए कई बार माफ भी किया और छोड़ दिया पर अठारहवीं बार मुहम्मद गौरी ने जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में मात दी और बंदी बना कर अपने साथ ले गया।

पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई दोनों ही बन्दी बना लिये गये और सजा के तौर पर पृथ्वीराज की आँखें गर्म सलाखों से फोड दी गई। अंत में चंदबरदाई जो कि एक कवि और पृथ्वीराज चौहान के ख़ास दोस्त थे। दोनों नें भरे दरबार में गौरी को मारने की योजना बनाई जिसके तहत चंदबरदाई ने काव्यात्मक भाषा में एक पक्तिं कही-

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान।”

और अंधे होने के बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने इसको सुना और बाण चलाया जिसके फलस्वरूप मुहम्मद गौरी का प्राणांत हो गया। फिर चन्द्रवरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों ने पकड़े जाने पर फिर से बंदी जीवन व्यतीत करने के बजाय दोनों ने एक दूसरे को मार डाला। इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया। उधर संयोगिता ने जब ये दुखद समाचार सुना तो उसने भी अपने प्राणों का अंत कर दिया।

पृथ्वीराज की पराजय और मृत्यु

1248 के युद्ध में मुहम्मद गौरी की विजय और पृथ्वीराज की पराजय हुई थी। युद्ध में पराजित होने के पश्चात् पृथ्वीराज की मृत्यु के विषय में इतिहासकारों के विभिन्न मत मिलते हैं। कुछ के मतानुसार वह पहिले बंदी बना कर दिल्ली में रखा गया था और बाद में गौरी के सैनिकों द्वारा मार दिया गया था।

कुछ का मत है कि उसे बंदी बनाकर ग़ज़नी ले जाया गया था और वहाँ पर उसकी मृत्यु हुई। ऐसी भी किंवदंती है कि पृथ्वीराज का दरबारी कवि और सखा चंदवरदाई अपने स्वामी की दुर्दिनों में सहायता करने के लिए गजनी गया था। उसने अपने बुद्धि कौशल से पृथ्वीराज द्वारा गौरी का संहार कराकर उससे बदला लिया था। फिर गौरी के सैनिकों ने उस दोनों को भी मार डाला था।

अन्य तथ्य

पृथ्वीराज चौहान ने अपनी वीरता, नेतृत्व, और न्याय से अपने शासनकाल को स्थापित किया। उन्होंने अपने देश और लोगों के प्रति अपार समर्पण दिखाया। उनके द्वारा किए गए युद्ध और उनकी नीतियां हमें इस बात का एहसास कराती हैं कि उनका योगदान भारतीय इतिहास में कितना महत्वपूर्ण था।

उनकी जिंदगी ने हमें यह सिखाया कि सच्ची वीरता और न्याय के लिए संघर्ष करने में कभी भी समय या परिस्थितियाँ कोई बाधा नहीं हो सकती। पृथ्वीराज चौहान ने अपनी जिंदगी के हर पड़ाव पर वीरता, साहस और निडरता का परिचय दिया।

आज भी उनकी कहानियाँ हमें साहस, आत्म-सम्मान और अद्वितीयता की प्रेरणा देती हैं। उनकी जिंदगी, उनकी कठिनाईयाँ और उनकी विजय हमें यह दिखाती है कि हमें कठिनाईयों का सामना करने का साहस होना चाहिए, और सच्चे आत्म-सम्मान के लिए हमें कभी भी समर्पण करने की आवश्यकता नहीं होती।


पृथ्वीराज चौहान का असली नाम क्या है?

पृथ्वीराज का जन्म 1166 ईस्वी को हुआ था। इनका जन्म भारत के गुजरात राज्य के पाटण में हुआ था। पृथ्वीराज चौहान को पिथौरा नाम से भी जाना जाता था। इनके पिता का नाम राजा सोमेश्वर चौहान था और इनकी माता का नाम रानी कर्पूरादेवी था यह अपने माता पिता की पहली संतान थे।


संयोगिता की मृत्यु कैसे हुई थी?

रानी संयोगिता की मृत्यृ नहीं हुई बल्कि वो सती हुई। ऐसा माना जाता है कि, पुराने जमाने में पति की मृत्यृ के बाद पत्नी का कोई अस्तीत्व नहीं रह जाता और इससे पहले उन्हें कोई मुगल राजा उठाकर ले जाए वो उससे पहले ही सती हो जाती है। कुछ इसी तरह का कार्य किया संयोगिता ने और अपनी इच्छा से देह त्याग दिया।

मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान पर कितनी बार आक्रमण किया था?

सन 1191-1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यहीं पर 18 बार युद्ध हुआ था।


पृथ्वीराज चौहान की पत्नी का क्या हुआ?

पृथ्वीराज की मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी संयोगिता और उनकी ननद प्रथा ने किला राय पिथौरा में जौहर करने का निर्णय लिया। पृथ्वीराज चौहान की मौत के बाद संयोगिता ने जौहर का निर्णय लिया तो उनकी सखियां भी साथ आ गईं। जौहर की तैयारियां होने लगीं।


पृथ्वीराज चौहान का सबसे बड़ा दुश्मन कौन था?

उसके दुश्मन, राजा जयचंद थे।

पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली का राजा कौन बना?

पृथ्वीराज के पुत्र गोविंदराजा चतुर्थ ने उनका उत्तराधिकारी बनाया। वह रणथंभौर चले गए और वहां एक शक्तिशाली चौहान साम्राज्य की स्थापना की। 

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा था?

पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला. वहीं दुखद ये हुआ कि जैसे ही मोहम्मद गोरी मारा गया उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे की हत्या कर दी|