जीव विज्ञान लघु प्रशनोत्तरी
क्या कारण है कि, मेढक पानी में और जमीन पर रह लेता है, जबकि मछली पानी के बारह जीवित नहीं रह सकती ?
मेढ़क जब पानी में रहता है तो वह त्वचा से श्वसन करता है, और जब जमीन पर रहता है तब फेफड़े से श्वसन करता है । मछलियाँ गिल की सहायता से श्वसन करती है, जो कि सिर्फ पानी में घुली हुई आक्सीजन ग्रहण करती है।
छिपकलियां किस तरह दीवार से चिपकी रहती हैं ?
छिपकली का पैर लचीलेदार कप के आकार का होता है, जो हवा के दबाव के सहारे दीवार से चिपकी रहती है।
मकड़ी अपना जाल कैसे बनाती है ?
मकड़ी के शरीर में एक सिल्क ग्लैन्ड पाया जाता है, जिससे प्रोटीन की तरह पदार्थ सावित होता है । इसी पदार्थ से मकड़ी जाल बनाती है।
ऊंट के शरीर में कूबड़ का क्या महत्व है ?
ऊँट का कूबड़ एक चलता-फिरता वसा का भण्डार है । जब भोजन और पानी की कमी होती है, तो यही वसा विघटित होकर ऊर्जा और पानी में बदल जाती है। इस विधि से ऊँट 17 दिन तक बिना पानी के जीवित रह सकता है।
जब हम रोते हैं, तो आँखों से आंसू कैसे बहता है ?
आँख की ऊपरी पलक में एक लेक्रपल नामक ग्रंथि पायो जाती है । आँसू इसी ग्रंथि से निकलता है । किसी भावुकता से या आँख में कुछ घुस जाने से यह ग्रंथि सक्रिय होकर आँसूओं का स्राव करती है नन्हें शिशुओं में यह ग्रंथि विकसित नहीं होती, इसीलिए उनके रोने पर आँसू नहीं निकलता है ।
मछली अन्य पशुओं के मांस की तुलना में अधिक स्वाथ्यकर है, क्यो?
मछली में मौजूद वसा में पॉली असंतृप्त वसा अम्ल सर्वाधिक होता है । यह वसा अम्ल मानव स्वास्थ्य लिए अधिक पोषक इसलिए होता है क्योंकि इसके अपघटन की दर काफी तीव होती है, जिससे संवहनीय क्रिया के दौरान अधिक संख्या में आक्सीजन के अणु ग्रहण कर लिए जाते हैं। परिणामस्वरूप मनुष्य में संवहनीय क्रिया बढ़ जाती है।
गर्म देशों के व्यक्ति ठंडे देशों की अपेक्षा काले क्यों होते हैं ?
त्वचा में मेलानिन नामक पिगमेंट बनाता है। गर्म देशों में व्यक्तियों को पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से बचाने के लिए त्वचा में मेलानिन का निर्माण अधिक मात्रा में होता है, जिससे वे काले होते हैं। ठंडे देशों के व्यक्तियों में मेलानिन कम मात्रा में पाया जाता है, जिससे वे गोरे होते हैं।
खाने वाली अच्छी वस्तु देखकर हमारे मुंह में पानी कैसे आता है ?
शरीर में लार ग्रंथियों के सक्रिय होने से मुँह में पानी आने लगता है। दो लार ग्रंथि जीभ के नीचे, दो निचले जबड़े के पीछे तथा दो प्रत्येक कान के नीचे पायी जाती है । यह प्रक्रिया रिफ्लेक्स क्रिया के द्वारा मेरुरज्जु से नियंत्रित होती है, तथा इस पर मस्तिष्क का कोई नियंत्रण नहीं रहता है।
अधिकांश मरुस्थलीय पौधे रात्रि में पुष्पित होते हैं।
ऐसा मरुस्थलीय पौधों का पुष्पन निम्न ताप पर होने के कारण होता है ।
मुँहासे किस कारण से होते हैं ?
त्वचा की बाहरी सतह पर ‘सिबेशियस’ नामक छोटी-छोटी ग्रंथियाँ पाई जाती हैं। इनमें ‘सिबम नामक चिकना पदार्थ बनता है । सिबेशियम ग्रंथियाँ महीन नालियों के माध्यम से त्वचा पर बने छिद्रों द्वारा बाहर की ओर खुलती हैं । ग्रंथियों में बना सिबम इसी नली से बाहर निकलता है। कभी-कभी सिबम बहुत अधिक मात्रा में बनता है, जिससे बाहर नहीं निकल पाता और फूलकर मुँहासे का रूप धारण कर लेता है।
श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) किसे कहते हैं ?
ल्यूकोरिया का शाब्दिक अर्थ है-सफेद तरल पदार्थ बहना । प्राय: योनि मार्ग पर एक तरह तह बनी रहती है, जो सुरक्षा कवच का कार्य करती है। कुछ स्त्रियों में इसकी अधिकता होने से श्वेत प्रदर होने लगता है। यह रोग एक रोगाणु ट्राइकोमोनास के संक्रमण से भी होता है ।
वृद्धावस्था में चेहरे पर झुर्रियाँ कैसे पड़ती हैं ?
झुर्रियाँ पड़ना वृद्धावस्था का प्रतीक है। त्वचा में ऊपरी सतह के नीचे कुछ संयोजी ऊतक है, जो दो प्रकार के प्रोटीन तन्तुओं से बनते है-कोलेजन और इलास्टिन । कोलेजन त्वचा को आवश्यक सामग्री देता है और इलास्टिन त्वचा को लचीलेदार बनाये रखता है। उम्र अधिक होने पर इलास्टिन खत्म होने लगता है, और कोलेजन अस्त-व्यस्त होकर धारियों जैसी संरचना बनाता है । सूर्य की पराबैंगनी किरणें भी झुर्रियाँ बढ़ाने में सहयोग करती है।
हमें पसीना कब और कैसे आता है ?
हमारे शरीर से पसीने का स्रोव ‘स्वेद ग्रंथियों’ से होता है । एक सामान्य मनुष्य के शरीर में 20 लाख से लेकर 35 लाख तक’स्वेद ग्रंथियाँ होती है। आकार एवं गुण धर्म के आधार पर स्वेद ग्रंथियों को दो वर्गों में बाँटा गया है-बड़ी स्वेद ग्रंथियों को ‘एपोप्राइन’ तथा छोटी ग्रंथियों को एक्काइन’ कहते हैं। प्रत्येक स्वेद ग्रंथि रुधिर कोशिकाओं के जाल से ढकी रहती है । पसीने के लिए पानी इन्हीं रुधिर कोशिकाओं से प्राप्त होता है। गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में मनुष्य के शरीर से दिन भर में 12 लीटर तक पसीना निकल आता है। पसीने में 99.5% पानी तथा शेष सोडियम, क्लोराइड, सल्फेड, फास्फेट, यूरिया और लैक्टिक अम्ल होता है। मनुष्य ‘गर्म रक्त’ वाले समूह का प्राणी है, और उसके शरीर पर तापक्रम बदलते मौसम के बावजूद स्थिर रहना चाहिए । जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है, तो शरीर की रक्षा करने के लिए पसीना निकलता है। .