रेडियो आयु-अंकन पद्धति (Radio Carbon Dating)

  • हमारे वायुमंडल में कार्बन दो रूपों में पाया जाता है- C12 (सामान्य कार्बन) तथा C14(रेडियो सक्रिय कार्बन)
  • हरित पादपों द्वारा जब प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया सम्पन्न की जाती है, तो उसके लिए जिस कार्बन डाइआक्साइड की जरुरत होती है ,उसमें C12 एवं C14 दोनों ही मौजूद होते ।
  • इस प्रक्रिया के द्वारा ही भोज्य पदार्थ/ग्लुकोज का निर्माण होता है, अत: इसमें जो कार्बन उपस्थित होता है, वह भी इन दोनों ही रूपों में पाया जाता है।
  • जब जंतुओं द्वारा इन पादपों/पादप उत्पादों को खाया जाता है तो कार्बन के ये दोनों ही रूप C12एवं C14 जंतु के शरीर में भी मौजूद होते हैं।
  • जब किसी जीव की मृत्यु होती है, तो उसमें C12 की मात्रा तो यथावत बनी रहती है, परंतु समय बीतने के साथ C14 की मात्रा घटती चली जाती है (C14 वस्तुतः एक रेडियो सक्रिय तत्व है, अत: इसका विघटन होता है)।
  • ऐसे में C12 एवं C14 के अनुपात के आधार पर हम इस बात का पता लगा सकने की स्थिति में होते हैं कि कोई भी जीवाश्म कितना पुराना है अर्थात उसका जीवनकाल क्या रहा होगा।
  • किसी भी जीव के जीवित रहने की स्थिति में C12एवं C14 का अनुपात हमेशा स्थिर होता है, जो कि 1012:1 होता है।
  • उदाहरण: यदि यह मान लिया जाये कि जीवाश्म के अंदर C12 की कुल मात्रा 1000X1012है, तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि यह जीवाश्म जब जीवित अवस्था में जीव के रूप में था तो इसमें C12 की मात्रा यथावत ही रही होगी ( C12विघटित नहीं होता)। इसका तात्पर्य यह भी है कि उस जीवित अवस्था में जीव में मौजूद C14 की कुल मात्रा 1000 रही होगी। यदि जीवाश्म में वर्तमान में मौजूद C14की मात्रा 500 हो, तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि इसका द्रव्यमान जीवित अवस्था की अपेक्षा ठीक आधी रह गयी है। हम यह भी जानते हैं कि C14 की अर्द्ध-आयु 5730 वर्ष होती है; अर्थात यह जीवाश्म 5730 वर्ष पुरानी मानी जायेगी।
  • अर्द्ध-आयु-जितने समय में किसी रडियो सक्रिय तत्व का द्रव्यमान आधा हो जाता है, उसे ही उस तत्व की अर्द्ध-आयु  कहते हैं।

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