आपको तो पता ही है कि इस साल गर्मी बहुत पड़ रही है, और ऐसी गर्मी में गाँव तो थोड़े कम गर्म हैं पर शहर के ढेर सारे हिस्सों में गर्मी काफी ज़्यादा है ! अब ये जो घटना है इसी को “नगरीय ऊष्मा द्वीप” कहा जा रहा है !

ये हो क्यूँ रहा है ?

  • कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, ये तापमान का अंतर अत्यधिक शहरीकृत और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के तापमान में भिन्नता के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में खुले और हरे भरे स्थानों की उपलब्धता के कारण हैं।
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप का निर्माण मूल रूप से कंक्रीट से बने शहरों की इमारतों और घरों के कारण होता है ! कंक्रीट के कारण जो ऊष्मा है वो वापस वायुमंडल में नहीं जा पाती !
  • तापमान में यह भिन्नता 3 से 5 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकती है।

शहरों के अधिक गर्म होने का कारण

  • निर्माण गतिविधि: निर्माण एवं विस्तार के लिये डामर और कंक्रीट जैसी कार्बन अवशोषित सामग्री की आवश्यकता होती है जो बड़ी मात्रा में तापमान को अवशोषित करते हैं !
  • गहरे रंग की सतह: भवनों की बाहरी सतह को सामान्यतः काले या गहरे रंग से रंग दिया जाता है जिस कारण अल्बेडो अर्थात् पृथ्वी से सूर्य की ऊष्मा का परावर्तन कम हो जाता है और गर्मी का अवशोषण बढ़ जाता है।
  • एयर कंडीशन: एयर कंडीशनर वायुमंडलीय हवा के साथ ऊष्मा का आदान-प्रदान करते हैं जो स्थानीय स्तर पर हीटिंग उत्पन्न करते हैं।
  • शहरी निर्माण : ऊँची इमारतें और संकरी सड़कें हवा के संचलन में बाधा उत्पन्न करती हैं जिससे हवा की गति धीमी हो जाती है जो प्राकृतिक शीतलन प्रभाव को कम करता है।
  • परिवहन प्रणाली : परिवहन प्रणाली और जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर उपयोग शहरी क्षेत्रों में तापमान को बढ़ाता है। 
  • वृक्षों की कमी: वृक्ष और हरित क्षेत्र वाष्पीकरण एवं कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की क्रिया को कम करते हैं तथा ये सभी प्रक्रियाएँ आसपास की हवा के तापमान को कम करने में मदद करती हैं। 

नासा का विश्लेषण

  • दिल्ली के आसपास के कृषि क्षेत्रों की तुलना में शहरी भागों का तापमान काफी अधिक है।
  • नासा के इकोसिस्टम स्पेसबोर्न थर्मल रेडियोमीटर एक्सपेरिमेंट (इकोस्ट्रेस) द्वारा ली गई तस्वीर ने दिल्ली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लाल धब्बे, साथ ही पड़ोसी शहरों जैसे- सोनीपत, पानीपत, जींद और भिवानी के आसपास छोटे लाल धब्बों का खुलासा किया है।

हल क्या है ?

  • हरित क्षेत्र में वृद्धि करना: वृक्षारोपण
  • पैसिव कूलिंग : पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों को बनाने के लिये व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति
  • ऊष्मा को प्रतिबिंबित करने और अवशोषण को कम करने के लिये छतों को सफेद या हल्के रंगों में रंगा जाना चाहिये।
  • टेरेस प्लांटेशन और किचन गार्डनिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

Categorized in: