भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को दिल्ली में संसद के नए भवन का उदघाटन करेंगे.इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेंगोल की स्थापना करेंगे माना जा रहा है कि कुछ नई परंपराएं भी शुरू होंगी |
सेंगोल को तमिलनाडु का राजदंड भी माना जाता है और इसे न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन का प्रतीक माना जाता है. इसका प्रयोग पहले राजाओं के समय में सत्ता हस्तांतरण के समय किया जाता था | नए संसद भवन में यह प्रयागराज के संग्रहालय से निकलकर लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप लगाया जाएगा |
कैसा दिखता है यह सेंगोल (What doesWhat Is Sengollook like)
जो सेंगोल नई संसद भवन में स्थापित होगा वह चांदी का बना हुआ और इसके ऊपर सोने की परत है | इसकी लंम्बाई 5 फीट है इसका वजन 800 ग्राम है | इसके ऊपर नंदी विराजमान हैं जो न्याय का प्रतीक है व कुछ झंडे की आकृतिया बनी हुई है, संसद भवन की नई इमारत में सेंगोल को रखने के लिए एक खास जगह निर्धारित की गई है | इसके ऊपर tamil भाषा में कुछ लिखा भी हुआ है |
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सेंगोल शब्द का क्या अर्थ है ?(What is the meaning of the word sengol?)
‘सेंगोल’ शब्द तमिल शब्द “सेम्मई” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नीतिपरायणता”. सेंगोल का तमिल में मतलब इंसाफ़ है. तमिल राजाओं के पास ये सेंगोल होते थे जिसे अच्छे शासन का प्रतीक माना जाता था.‘सेंगोल’ को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश’ (तमिल में‘आणई’) होता है. दो महाकाव्य सिलापादिकरम और मनिमेiलाई, में सेंगोल की चर्चा की गई है | दुनिया भर में प्रसिद्ध तिरुक्कुरल साहित्य में भी सेंगोल के बारे में ज़िक्र है.
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सेंगोल का इतिहास(History of Sengol)
दावा है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 को तमिल पुजारियों के हाथों सेंगोल स्वीकार किया था.और इसे आनंद भवन में रख दिया गया था जहां नेहरू जी रहते थे. नेहरू ने इसे अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था. बाद में 1960 में इसे नेहरू ने एक म्यूज़ियम में रख दिया था और तब से सेंगोल म्यूज़ियम में ही रखा है. शंकराचार्य ने भी अपनी पुस्तक में इसका जिक्र किया है.
किन्तु कुछ लोगों का कहना है कि माउंटबेटेन ने नेहरू को सत्ता हस्तानांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल भेंट किया था | उनके मुताबिक़, “दुनिया भर में प्रसिद्ध तिरुक्कुरल साहित्य में भी सेंगोल के बारे में ज़िक्र है.”
यह चोल वंश के समय का माना जाता है। राजगोपालाचारी ने चोल साम्राज्य की परंपरा का ज़िक्र किया था, जिसमें राज्याभिषेक के समय राजा को ‘राजदंड’ सौंपा जाता है.