परमाणु अप्रसार संधि {Nuclear Non-Proliferation Treaty(NPT}

  • 1 जुलाई, 1968 को इस संधि पर हस्ताक्षर किये गये।
  • 5 मार्च, 1970 को यह संधि प्रभावी बनी।
  • इसके तहत कुल 190 देश शामिल हैं।
  • पांच प्रमुख देश इसमें शामिल नहीं हैं- भारत, पाकिस्तान, इजरायल, उत्तरी कोरिया (2003 में संधि से बाहर आ गया था) एवं दक्षिणी सूडान।
  • संधि का मुख्य उद्देश्य परमाणु अस्त्रों और इससे सम्बद्ध प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना है। साथ ही, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोगों को बढ़ावा देकर पूर्ण निरस्त्रीकरण को संभव बनाना है।
  • संधि के तहत चुनिंदा देशों को इस संधि से परे रखा गया है, जिन्हें परमाणु-सम्पन्न राष्ट्र राज्य का दर्जा दिया गया है- संयुक्त राज्य अमेरिका, युनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस एवं चीन।
  • इन पांचों देशों को परमाणु अस्त्र को बनाये रखने की छूट यह संधि प्रदान करती है, क्योकि इन्होंने यह शक्ति 1 जनवरी, 1967 से पूर्व ही हासिल कर ली थी।
  • भारत ने अभी तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, क्योंकि उसकी यह स्पष्ट मान्यता रही है कि यह संधि विभेदनकारी है, क्योंकि इसमें चुनिंदा देशों की परमाणु शक्ति सम्पन्नता को बनाये रखने की विशिष्ट छूट प्रदान की गयी है। भारत का मानना है कि इस संधि की सार्थकता तभी संभव है, जब विश्व को पूर्ण परमाणु अस्त्र रहित बनाया जाये।

नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह {Nuclear Suppliers Group(NSG}

  • इसकी स्थापना वर्ष 1974 में की गयी
  • इसकी कुल सदस्य संख्या-48 हैं
  • यह एक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण संधि है, जिसके तहत ऐसे देश शामल हैं जो कि नाभिकीय ईंधनों एवं प्रौद्योगिकी को निर्यात करने की सामर्थ्य रखते हैं।
  • संधि के तहत यह व्यवस्था कायम की गयी है कि सदस्य देशों द्वारा किसी भी गैर-सदस्य देश को नाभिकीय पदार्थों, उपकरण अथवा प्रोद्योगिकियों का निर्यात नहीं किया जा सकेगा, ताकि परमाणु अस्त्रों का अप्रसार संभव हो सके।
  • भारत इस समूह की सदस्यता हेतु पिछले कई दशकों से प्रयासरत रहा है, ताकि वह नाभिकीय शक्ति का समुचित विकास कर सके। परंतु, कई एस देश हैं, खासकर चीन, ब्राजील, ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, आयरलैंड एवं तुर्की जो भारत को इसमें प्रवेश होने देने के मार्ग में इस आधार पर रोड़े अटकाते रहे हैं कि भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और इसलिए उस पर भरोसा नहीं जताया जा सकता है।

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